दिया
(कविता)
घने अन्धकार में
टिमटिमाता दिया
कहता है धुप्प
अंधेरे से
भले ही तुम कब्जा
किये
दिखते हो हर तरफ
पर हार ही जाते हो
मुझ जैसे
छोटे दिये के
प्रकाश से
यह एक संकेत है
मिथ्या कितनी भी
विजयी दिखती हो
पर हार ही जायेगी
सत्य के प्रकाश से
और हां
सत्य के साथ
खड़े होने के लिए
खुद को दिये सा
जलाना पडता है
-०-
राजेश सिंह
B-701, स्वाति फ्लोरेंस
निकट सो बो सेंटर
साउथ बोपल, अहमदाबाद
साउथ बोपल, अहमदाबाद
सुन्दर कविता
ReplyDeleteसुंदर रचनाएं
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