मदद
(लघुकथा)
राहुल सड़क पर
बेहोशी की अवस्था में पड़ा था,हैलमेट का चूरा-चूरा हो गया था, स्कूटर दूर कहीं छितरा पड़ा था। शायद कोई टक्कर मारकर चला गया था।
पुष्पिता का मन आज सुबह से ही बहुत खबरा रहा था।उसने पति को फ़ोन किया। फ़ोन किसी
अजनबी ने उठाया तब ये सारा हाल पुष्पिता को पता चला। भला इंसान था कोई, जो मदद कर रहा था, पुष्पिता के लिए वो किसी फरिश्ते
से कम नहीं था। पुष्पिता ने उसको वहीं रुके रहने की प्रार्थना की और राहुल के बॉस
को फ़ोन पर सब बातें बता दीं। आँसुओं का बाँध नहीं रुक रहा था, पर संयम बनाए हुए थी।राहुल दिल्ली अपने बॉस से ही मिलने जा रहा था। बॉस
तुरंत गाड़ी लेकर आए और राहुल को अपने साथ ले गये। वह फरिश्ता तब तक वहीं रुका
रहा। हजारों दुआएँ दे डाली थी पुष्पिता ने; वरना आजकल कौन
झंझट में पड़ता है पुलिस आदि के।
सालभर पहला यह
चित्र राहुल की आँखों के सामने ताज़ा हो उठा।
सामने पलटी हुई
गाड़ी को देखा। भीड़ अब भी तमाशबीन बनी खड़ी थी। लोग अनदेखा करके चले जा रहे
थे।उसे एयरपोर्ट जाना था। मुम्बई में बहुत ज़रूरी ऑफ़शियल मीटिंग थी। घड़ी देखी-अगर
वह यहाँ 10-15 मिनट भी रुकता है; तो
फ़्लाईट छूटने का डर है। वह गाड़ी से उतरा। उसने एक-एक कर सभी को गाड़ी से बाहर
निकाला।पूरा परिवार था साथ में,माँ-बाप,बच्चे।राहुल ने सबको अपनी कार में बिठाया।कोई खून से लथपथ था,तो किसी की हड्डी टूटी लगती थी।हॉस्पिटल में भर्ती कराया और तब तक रुका,जब तक कि सबके सुरक्षित होने का आश्वासन डॉक्टर से नहीं मिल गया।उनके
परिवार के रिश्तेदारों को फ़ोन करके ख़बर कर दी। फ़्लाईट का समय निकल गया था। हैड
ऑफ़िस से लताड़ तो पड़ेगी ही,यह सोचकर भी उसके होठों पर
सुकून भरी मुस्कान बिखर गई।
-०-
डॉ० भावना कुँअर
ऑस्ट्रेलिया (सिडनी)
सुन्दर प्रेरणादायक लघुकथा
ReplyDeleteलघुकथा प्रेरणादायक है
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