कृष्णाष्टक
(पद्य-सवैया)
(1)
चन्द्र सुआनन कानन
कुण्डल कुन्तल राशि लुभाय रहे हैं।
जेवत जात गिरावत
माखन आनन सों लिपटाय रहे हैं।
मन्द मनोहर हास युँ
सोहत तीनहुँ लोक रिझाय रहे हैं।
बालक रूप धरे जगपालक
नन्द जु आँगन धाय रहे हैं।।
(2)
केसर भाल सुशोभित,मोहक
कण्ठन माल सजाय रहे हैं।
मोह रही अधराधर की छवि मानहुँ कुंज
रिझाय रहे हैं।
सोहत हैं मकराकृत कुण्डल,लोचन
मीन लजाय रहे हैं।
बालक रूप धरे जगपालक नन्द जु आँगन धाय
रहे हैं।
(3)
शोभित रत्नजड़ी मुरली,हरि
राधहिं आजु सताय रहे हैं।
पैंजनिया छनकी प्रभु के पग,मानहुँ
नाद गुँजाय रहे हैं।
ज्योतित आभ छवी मनमोहक मातु हिया
हरषाय रहे हैं।
बालक रूप धरे जगपालक नन्द जु आँगन धाय
रहे हैं।।
(4)
फोरि दयी मटकी दधि की बृजबालन नाथ
खिझाय रहे हैं।
बाल गुपाल चले सब भागत छाँव कदम्ब
जुड़ाय रहे हैं।
सृष्टि विमोहित रूप विलोकत बैठ हरी
मुसकाय रहे हैं।
बालक रूप धरे जगपालक नन्द जु आँगन धाय
रहे हैं।।
(5)
कन्दुक जाय गिरी जमुना जल दम्भ
प्रभंजक जाय रहे हैं।
रोवत-रोवत ग्राम जु वासिन देवन साथ
मनाय रहे हैं।
शाप विमुक्त करे जब माधव कालिय मस्तक
नाय रहे हैं।
बालक रूप धरे जगपालक नन्द जु आँगन धाय
रहे हैं।।
(6)
इन्द्र सकोप डटे ,घन
बरसे,सों गिरिराज उठाय रहे हैं।
विस्मित देखि रहे सुर भूप अचंभित हो
सकुचाय रहे हैं।
स्वर्ग तजे सब देव विलोकत भक्ति सुधा
बरसाय रहे हैं।
बालक रूप धरे जगपालक नन्द जु आँगन धाय
रहे हैं।।
(7)
चीर उठाय चढ़े तरु ऊपर ,गोपिन
ज्ञान सिखाय रहे हैं।
प्रेम वशी निधि के वन मोहन अद्भुत रास
रचाय रहे हैं।
गोपिन के मन प्राण बसे,सुदुलार
सखा नित पाय रहे हैं।
बालक रूप धरे जगपालक नन्द जु आँगन धाय
रहे हैं।।
(8)
आनन खोल दिखावत मातहिं काल गति समुझाय
रहे हैं।
शीश झुकावत शम्भु,दिवाकर,योगिन ध्यान लगाय रहे हैं।
वेद-पुराण स्वरूप बखानत महिमा गाय
अघाय रहे हैं।
बालक रूप धरे जगपालक नन्द जु आँगन धाय
रहे हैं।।
-०-
नीलम सिंह
139,खलील शर्की , तीन खम्बागली , शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश )
उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteसराहनीय और प्रसंशनीय छंद
ReplyDeleteसरल भाषा का सफल प्रयोग 👌🙏🙏
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