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Monday 4 November 2019

किन्तु परन्तु (आलेख) - श्रीमती प्रभा पारीक

किन्तु-परन्तु
(आलेख)
नाच मेरी जान हो के मगन तु,छोड के सारे किन्तु परन्तु,
जी ले मेरी जान हो के मगन तु,छोड के सारे किन्तु परन्तु

मैं नाचुं किसी को क्या? मै हँसु किसी को क्या ....पर वास्तव में ऐसा नहीं है। हमें हमसे कम और दूसरों से सरोकार अधिक होता है।

नाचे तो क्यों नाचे?, नहीं नाचे तो क्यों नहीं नाचे?, यहाँ क्यों वहाँ क्यों नहीं ऐसे क्यों वैसे क्यों नहीं ,कम ही ज्यादा क्यों नहीं नाचना आता है तो भी क्यों नहीं नाचते हो ?,क्या ये उम्र है? समय है? नाचने का आदि आदि|

साहेबान यह युग मुल्ला नसीरूद्दिन का नहीं रहा है। जिसमें क्यूं, क्या से परेशान हो कर मुल्ला नसीरूदिद्न मूक जानवर, अपने प्रिय गधें को कुए में फेकने का मजबूर हो गये और न ये शिव पार्वती के पृथ्वी भ्रमण का युग है जिसमें अपने नन्दी बैल पर भ्रमण करते हुये किन्तु परंन्तुसे परेशान हो कर भगवान शिव ने पार्वती जी के साथ पृथ्वी भ्रमण को विराम दिया और मानव प्रवृति को स्वीकार करते हुये पुनः कैलाश लौट गये। ये आधुनिक युग है साहेबान, जिसमें अब किन्तु- परन्तुका कोई स्थान नहीं है आगे बढने के लिये सभी किन्तु-परन्तुको छोड़ कर ही आगे बढ़ना होगा।

मैं सुबह जल्दी उठूं या देर से, यह मेरी मर्जी है लोगों की नजर में अच्छी या बुरी क्यों हो जाऊँ ? मुझे क्या पसंद है क्या ना पसंद इसके साथ यदि मैं आगे बढ़ती जाऊँ तो किसी को क्या तकलीफ हो सकती है। जब तक हमारा व्यवहार सामाजिक नियमों, मानकों का उल्लंघन नहीं करता तब तक हमें किसी भी किन्तु-परंन्तु पर ध्यान देना आवश्यक नहीं है। आप भी जानते है जितने भी सफल व्यक्ति हुये है उन्होंने अपनी सफलता की प्रेरणा स्वयं से ली है क्यों कि उन्होंने केवल और केवल अपने मन की सुनी थी। इसलिये अपनी सफलता-असफता का निर्णय आप न करें बस प्रयास करते जायें । गुजराती गायक का एक लोकप्रिय गीत याद आता ’’हे राज मने लाग्यो कुसंबी नो रंगमुझे केसरिया रंग लगा है, इस कसूंबल रंग को किसी ने देश प्रेम से लिया, किसीने बहादुरी से लिया और किसी ने मस्ती से लिया पर जिसने भी इसे जिस भी रूप में लिया और अपनाया, उसने अपना जीवन भरपूर जिया।

अपने सपनों को पूरा करने के लिये आप जितना ज्यादा जोखिम उठाते हैं असफलता का भी आपको उतना ही ज्यादा मुकाबला करना पडता है विश्वस्तरीय लोग जिन पथ्थरों से ठोकर खाते थे उन्हें ही अपनी उन्नती के सोपान बना लेते थे वे अपनी असफलता का प्रयोग स्वयं को सफलता के करीब ले जाने के लिये करते हैं। समस्याओं पर नहीं संभावनाओं पर ध्यान केन्द्रित करते हैं।

वास्तव में देखा जाये तो सभ्यता ने जीवन को उन्माद में भर दिया है मन मरजी करने की चाहत में मानव असहाय-सा अपनी शक्ति के दम्भ में प्रदर्शन करता रहता है और अन्जान है कि वह कहाँ जा रहा है, क्यूं जा रहा है? इसलिये मगन होकर नाचने के लिये विवके का दामन न छोड़े किन्तु परन्तुपर थमना नहीं है पर रूककर एक बार विचार करना जरूरी है। 

इस सभ्यता ने सबसे बड़ा अकल्याण यह किया हे कि उसने हम मनुष्यों को अचेत सा कर दिया है और मानव में निहित असीम दैवीय संभावनाओं को दबा दिया है। आज हम प्रत्येक क्षण को रूपैय की कसौटी पर तोलते हैं। प्रत्येक मनुष्य की यह इच्छा रहती है कि वह दुखः से छूटकर सुख प्राप्त करे , इसके लिये समस्त संसार के मनुष्य रात -दिन प्रयत्न करते रहते हैं जबकी दुखः और सुख बाह्ररी परिस्थितियां नहीं मनःस्थिती हैं। 

आप मगन होकर नाचने के लिये साहस शक्ति जुटा सकते हैं। वह करने के लिये जो आप सही समझते हैं यह गलत भी हो सकता है लेकिन आप जब तक उसे कर चुके होंगे। इसलिये अहम है कि हम अपनी बुद्वि से श्रेष्ठ चुनें और उसके अन्तिम मुल्यांकन का फैसला ईश्वर अथवा समय पर छोड दें। 

मनुष्य का व्यवहार बहुत कुछ हमारी चित्रकारी की कला जैसा है। मनुष्यों की आँख का कोण बदलते ही सारा द्रष्य बदल जाता है। यह बदलाव विषय पर नहीं वरन देखने वाले की नजर पर निर्भर करता है मनुष्य अपने जीवन से क्या चाहता है सबसे पहले वह चाहता है कि वह सूखी रहे। यह भी चाहता है कि वह समृद्ध रहे और जो भी काम करे उसमें सफलता प्राप्त हो। मानवीय दिमाग दो तरह से ही सोच सकता है छाया और रोशनी, मीठा-खटटा,अच्छा-बुरा। हमारे जीवनशैली व प्रकृति में इन दौनों का अस्तित्व एक भ्रम है। दुनिया में अच्छाई है ना बुराई केवल होना और करना है क्यों की आदमी या तो किसी कला की रचना कर सकता है या उसको देख कर बात कर सकता है। इसलिये मेरी जान नाच होकर मगन तू पर विवके को साथ रख तु तभी नाचने लायक रहेगा और किन्तु- परन्तु का सामना भी कम से कम करना पड़ेगा।
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श्रीमती प्रभा पारीक
श्रीमान शरद पारीक(पुत्र), प्रभा पारीक,704 ओबेराई एसक्रायरओबेराय वुड़ के सामने , मोहन गोखले मार्गओबेराय गार्डन सिटीगोरेगांव ईस्अ मुम्बई 

प्रभा पारीक 5 पंचवटी सोसायटीदहेज बाई पास लिंक रोड़ ,भरूच 

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