तलाशते रहिए
(गज़ल)
कहीं दरख़्त कहीं
घर तलाशते रहिए ।
हवा के रंग का मंज़र
तलाशते रहिए ।
यक़ीन हो न हो लेकिन
यही मुनासिब है
हरेक मोड़ पे रहबर
तलाशते रहिए ।
हमें शिकस्त न देगी
समय की ये उलझन
दिलों में फ़िक्र
के पत्थर तलाशते रहिए ।
तमाम राह दिखाई न
दे जो क़ातिल तो
उसी के हाथ में खंज़र
तलाशते रहिए ।
जहाँ तलक भी ये सहरा
दिखाई देता है
कदम कदम पे समुन्दर
तलाशते रहिए ।
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विष्णु देवी तिवारी 'उषा तिवारी' (नेपाल)
भरतपुर-३, नारायाणगढ, चितवन
(नेपाल)
-०-
विदेश के साहित्यिक भी जुड़े हैं बहुत बढ़िया 👌👌🙏🙏
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