(कविता)
हाँ मेरी सखियाँ भी मुझे याद करती हैं...अपनी ही धुन में मस्त रहतीं
जब कोई बात बिगड़ जाती है
चारों ओर से हताश जब वह
थक-हार उदास सी हो जाती हैं
तब याद उन्हें मेरी आती है...
हाँ मेरी सखियाँ भी मुझे याद करती हैं...।
भविष्य के सपनों को संजोये
वर्तमान भूल जाती हैं
ख़्वाबों के जंगल में जब यूंही भटकने निकलती हैं
पैरों में काँटा चुभता तब आँखें यूं भर आती हैं
बेमतलब सी दुनिया जब लगती
तब याद उन्हें मेरी आती है...
हाँ मेरी सखियाँ भी मुझे याद करती हैं...।
जिंदगी में जब हलचल सी मच जाती है
कहने-सुनने को कोई पास ना हो तब
भीड़ में भी खालीपन का एहसास हो जब
धीरे से मन में इक कुहूक सी उठ जाती है
तब याद उन्हें मेरी आती है...
हाँ मेरी सखियाँ भी मुझे याद करती हैं...।
वैसे तो बरसों बीत जाते
इकदूजे की ख़बर तक ना रखती हैं
जैसे ही कोई काम निकल आए
तो मिलने की फरियाद वो करती हैं
यह सोच के खूश हो लेती हूं मैं
चलो सुख में ना तो दुख में ही सही
पर याद उन्हें मेरी आती है...
हाँ मेरी सखियाँ भी मुझे याद करती हैं...।
***
पता:लक्ष्मी बाकेलाल यादव
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Superb
ReplyDeleteThanks...😊
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DeleteAwesome
ReplyDeletenice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteSuper
ReplyDeleteMast ������
ReplyDeleteKhup chan kavita ahe
ReplyDeleteअप्रतिम
ReplyDeleteखूप छान
ReplyDeleteआपकी कविताए बहुता ही शानदार होती है
ReplyDeleteबहुत ही बढियाॅ
ReplyDeleteबहुत ही बढियाॅ
ReplyDeletebeautiful
ReplyDeleteखूप छान
ReplyDeleteखूप छान
ReplyDeleteएकदम भारी 👌👌👌
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteNice
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