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Wednesday, 12 August 2020

मां तुमसे ही है मेरी उत्पत्ति (कविता) - रोशन कुमार झा

मां तुमसे ही है मेरी उत्पत्ति
(कविता)
मां तूने जन्म दी, पर गर्लफ्रेंड के बिना दिन कटी ,
हम रोशन हमें बनना है न किसी के पति !
बस इसी तरह बढ़ते रहे मेरी सफलता की गति ,
मां तूने मुझे उत्पन्न की और मैं तेरा पुत्र हर रोज़ करता
हूं एक कविता की उत्पत्ति !!

मां सुन लो मेरी कविता , अगले साल की कविता
पर लिखा हूं ये कविता ,
सुन लीजिए आप , पूजने योग्य है पिता !
लिखता हूं पूजा पाठ व करके योग कविता ,
हे ईश्वर,खुदा, मसीहा मत मेरे रोग मिटा ,
हे जिन्दगी तू हमें हरा , हमें न तू जीता !!

हार के आऊं हमें हार से है न आपत्ति ,
चाहे मुझ पर आये लाख विपत्ति !
रहें या न रहे मेरी आंख की गति ,
बस मां तुम्हारी दया बना रहे , जिससे मैं रोज़ करते
रहूं एक कविता की उत्पत्ति !!

सुख-दुख सबके जीवन में है सटी ,
कुछ बनना है , इसलिए सुनता हूं, करता हूं न
कभी किसी का बेइज्जती !
खुद को पहुंचता, पर पहुंचाता हूं न किसी को क्षति ,
हे माँ तुम्हारी दया बना रहे, मैं दुख में भी मुस्कुरा कर
करते रहूं हर रोज़ एक कविता की उत्पत्ति !!
-०-
रोशन कुमार झा
कोलकाता (पश्चिम बंगाल)

-०-



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