बातें
(कविता)
कहकशा उनकी बातों का
कुछ इस तरह चला
न वो चुप रहे, न ज़माना चुप रहा
उनकी बातों में कर्कशता इतनी थी
की खुरच गए सूखे जख्म सभी
दरख़्तों से पत्ते झड़ना रह गए
कहकशा उनकी बातों का
कुछ इस तरह चला
महफिल में रहते हुए भी
हम तनहा रह गए
न वो चुप रहें ना जमा चुप रहा
नजरों को उठाकर देखना मुश्किल था
उसका बस अब तंज कसना रह गया
निगाहों से मेरी आंसुओं का बहना रह गया
कहकशा उनकी बातों का कुछ इस तरह चला।
-०-पता:
मोनिका शर्मा
गुरूग्राम (हरियाणा)

-०-
कुछ इस तरह चला
न वो चुप रहे, न ज़माना चुप रहा
उनकी बातों में कर्कशता इतनी थी
की खुरच गए सूखे जख्म सभी
दरख़्तों से पत्ते झड़ना रह गए
कहकशा उनकी बातों का
कुछ इस तरह चला
महफिल में रहते हुए भी
हम तनहा रह गए
न वो चुप रहें ना जमा चुप रहा
नजरों को उठाकर देखना मुश्किल था
उसका बस अब तंज कसना रह गया
निगाहों से मेरी आंसुओं का बहना रह गया
कहकशा उनकी बातों का कुछ इस तरह चला।
-०-पता:
मोनिका शर्मा
गुरूग्राम (हरियाणा)
-०-
baaten sach me he kamal karti hai ..........waah
ReplyDeletesunder vichar
ReplyDeletesunder racha hai
ReplyDeletekahkasha kya baat hai monu
ReplyDeletekya baat kya baat
ReplyDeletebahut he khubsurat andaz
ReplyDeletebahut acha likhti hai re monu
ReplyDeletebahut he ache vichhar
ReplyDeletevery beautiful poem
ReplyDeletewaah didi bahut acha lika
ReplyDeletekeep wirting didi
ReplyDeletevery good monika
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