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Saturday, 7 December 2019

बातें (कविता) - मोनिका शर्मा

बातें
(कविता)
कहकशा उनकी बातों का
कुछ इस तरह चला
न वो चुप रहे, न ज़माना चुप रहा
उनकी बातों में कर्कशता इतनी थी
की खुरच गए सूखे जख्म सभी
दरख़्तों से पत्ते झड़ना रह गए
कहकशा उनकी बातों का
कुछ इस तरह चला
महफिल में रहते हुए भी
हम तनहा रह गए
न वो चुप रहें ना जमा चुप रहा
नजरों को उठाकर देखना मुश्किल था
उसका बस अब तंज कसना रह गया
निगाहों से मेरी आंसुओं का बहना रह गया
कहकशा उनकी बातों का कुछ इस तरह चला।
-०-पता:
मोनिका शर्मा
गुरूग्राम (हरियाणा)

-०-

***
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12 comments:

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