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Saturday, 7 December 2019

क्रोध (आलेख) - बलजीत सिंह

क्रोध
(आलेख)
हम गर्मी के मौसम में कभी कभी ठंडा पेय पदार्थ 'सोडा' भी पी लेते हैं ,जिसके कारण हमारे शरीर की गर्मी थोड़े समय के लिए दूर हो जाती है । वह पेय पदार्थ इतना ठंडा होता है, अगर उसमें थोड़ा सा नमक डाल दिया जाए , वह उफान के साथ बाहर निकलता है । उसमें इतना जोश हो जाता है, वह रोकने पर भी नहीं रुकता । परंतु मनुष्य की रगों में तो खून बहता है। अगर उसके जख्मों पर कोई नमक से छिड़कता है, उसके हृदय में भी एक तूफान आता है , जो क्रोध का रूप धारण कर लेता है ।

जब व्यक्ति किसी बात या घटना के कारण आग-बबूला हो उठे,उसे क्रोध कहते हैं । यह हृदय की वह आग है ,जो आंखों में स्पष्ट दिखाई देती है । क्रोध की भावना मनुष्यों में ही नहीं ,जीव जंतुओं में भी पाई जाती है ।

किसी जंगल में तेज गति से तूफान आने पर ,वहां चारों तरफ हाहाकार मच जाता है ।पेड़ हिलने लगते हैं , टहनियां टूटने लगती हैं, सभी जीव अपनी- अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगते हैं ।पक्षियों के घोंसले ,वृक्षों के नीचे गिर जाते हैं और रेत वृक्षों की शाखाओं पर चल जाता है । यह कुछ समय का तूफान सारे जंगल को तहस-नहस कर देता है। इसी प्रकार क्रोध भी तूफान के समान होता है ।जब व्यक्ति क्रोध आता है ,वह अपने -पराए को नहीं पहचानता । उससे होने वाली हानि का कोई अंदाजा नहीं लगा सकता । जब क्रोध धीरे-धीरे शांत होता है, तब उसे अपनी गलती का एहसास जरूर होता है ।

आकाश में जब कोहरा छाया रहता है ,उसमें कुछ भी नजर नहीं आता । सारा वातावरण अदृश्य होने लगता है । ऐसे में अगर हम किसी को आवाज देकर बुलाएं, वह कोहरे में अच्छी तरह सुनाई नहीं देगी । इसी प्रकार जब क्रोध उत्पन्न होता है, वह पूरे शरीर को अपने वश में कर लेता है। क्रोध के आवेश में व्यक्ति अपने होश- हवास भूल जाता है, जिसके कारण उसे अच्छा- बुरा कुछ भी दिखाई नहीं देता ।

एक जलते अंगारे को हम आग के पास ले जाएं ,वह पहले की अपेक्षा तेजी से जलना लगेगा । अगर हम उसे ठंडे स्थान पर रख दें ,वह जल्दी से बुझने लग जाएगा । इसी प्रकार क्रोध भी एक अंगारे के समान है । हमें जिस व्यक्ति पर क्रोध आता है, उसके सामने रहने से हमारा क्रोध और भी बढ़ जाता है । हम उससे जितना भी दूर जाएंगे ,तब हमारा क्रोध धीरे -धीरे शांत होगा ।

किसी कठोर फल को खाते समय, दांत भी टूट सकता है । ऐसे फल को खाने से पहले, हमें उसकी कठोरता को अवश्य देखना चाहिए ।परंतु उसे भूख में खाना किसी की मजबूरी भी हो सकती है ।इसी प्रकार भीड़ में, कोई हमारे पांव पर पांव रख देता है, उस समय हमें भी क्रोध आता है । हम उसकी मजबूरी को अच्छी तरह से समझते हैं , क्योंकि उसने ऐसा जान -बूझकर नहीं किया ।

जिस व्यक्ति को दौलत का नशा हो जाता है ,वह अपने -पराए को नहीं पहचानता । उसके अंदर अहं की भावना उत्पन्न हो जाती है , उसे दौलत के सिवा कुछ दिखाई नहीं देता ।इसी प्रकार क्रोध के आवेश में व्यक्ति अंधा हो जाता है। उसके हाथ में कुछ भी वस्तु आती है, वह उसे तोड़ने का प्रयास करता है। वह उस वस्तु की कीमत को नहीं पहचानता ।

पौधे की जड़ में कीड़ा लगने पर, वह पौधा सूखने लगता है । उस पर किसी प्रकार के फल एवं फूल नहीं आते ।अगर समय पर उसकी देखभाल न की जाए, वह अपने आप नष्ट हो जाएगा । इसी प्रकार क्रोध भी एक कीड़े के समान है ,जो हमारे जीवन का विनाश करता है ।यह मनुष्य को शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर बनाता है ।

लोग अक्सर केला खाने के पश्चात उसका छिलका रास्ते में फेंक देते हैं ।उस छिलके से किसी को चोट लग सकती है और वह दुर्घटना का कारण भी बन सकता है ।इसी प्रकार क्रोध का कारण चाहे कुछ भी हो ,परंतु उसका परिणाम कभी-कभी दूसरों को भी भुगतना पड़ सकता है । 
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बलजीत सिंह
हिसार ( हरियाणा )
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2 comments:

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  2. बहुत बढ़िया,सटीक आलेख आदरणीय बलजीत जी.क्रोध मनुष्य को केवल हानि ही पहुँचता है. 
    मेरे ब्लॉग पर भी आइए https://sudhaa1075.blogspot.com/

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