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Wednesday, 29 July 2020

बेटियाँ (कविता) - लक्ष्मी बाकेलाल यादव

बेटियाँ
(कविता)
कौन कहता है बेटियाँ
जिंदगी जीना नहीं जानती...

फर्क सिर्फ इतना है कि
वह अपनी खुशी की खातिर
दूसरों को गम देना नहीं जानती

बचपन से पराया धन होने की
सिख उन्हें है दी जाती
फिर भी अपनों को
उसी शिद्दत से हैं वह चाहती

कौन कहता है बेटियाँ
जिंदगी जीना नहीं जानती...

पापा की दुलारी बिटिया
पल भर में कब हो जाती इतनी बड़ी
परिवार पर जो आए कोई मुसिबत
पाते हैं हम उन्हें सबसे आगे खड़ी

लाखों पाबंदियों से है उसकी जिंदगी घिरी
हर सपनों की कुर्बानी देकर
बनती है वह सबके लिए भली

त्याग- ममता की मूरत
पता नहीं कब वह बन जाती
अपने ख्वाबों की बली चढ़ाकर
रांझे की हीर वे कहलातीं

कौन कहता है बेटियाँ
जिंदगी जीना नहीं जानती...

अपनी इक भूल के लिए
बरसों सहना पड़ता है
खुद को साबित करते-करते
सबकुछ गवाँना पड़ता है

फिर भी हर हाल में चेहरे से
मुस्कान अलग ना वो कर पाती
कौन कहता है बेटियाँ
जिंदगी जीना नहीं जानती...।

***
पता:
लक्ष्मी बाकेलाल यादव
सांगली (महाराष्ट्र)

-०-



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11 comments:

  1. बहुत ही सुंदर कविता

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  2. बहुत ही सुंदर कविता, हृदय से जोड़ी हुई कविता,

    ReplyDelete
  3. अप्रतिम कविता

    ReplyDelete
  4. बहुत अच्छि रचना

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर कविता है अभिनंदन बहुत शुभ कामनाए !!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. खूप खूप आभारी आहे

      Delete

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