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Wednesday 22 January 2020

देदीप्यमान लौ हूँ (कविता) - ज्ञानवती सक्सेना

देदीप्यमान लौ हूँ

(कविता)
मैं मैं हूँ,
आंगन की रौनक हूँ
फुलवारी की महक हूँ,किलकारी हूँ,
मैं व्यक्ति हूँ, सृष्टि हूँ
अपनों पर करती नेह वृष्टि हूँ
मैं अन्तर्दृष्टि हूँ,समष्टि हूँ
ममता की मूरत हूँ
समाज की सूरत हूँ
मैं मैं केवल देह नहीं
संस्कृति की रूह हूँ
मैं पावन नेह गगरिया हूँ
मैं सावन मेह बदरिया हूँ
मैं इंसानियत में पगी
अपनेपन में रंगी
सपनों से लदी
अपनों में रमी
मौज हूँ
धड़कता दिल हूँ
आला दिमाग हूँ
राग हूँ, रंग हूँ
फाग हूँ ,जंग हूँ
मंजिल हूँ, मझधार हूँ
मैं जन्नत हूँ,मन्नत हूँ
मैं मैं हूँ
मैं ख्वाब हूँ, नायाब हूँ
लाजवाब हूँ
किसी की कायनात हूँ
मैं संस्कार हॅू
सभ्यता का आयाम हूँ
संस्कृति का स्तंभ हूँ
उत्थान -पतन का पैमाना हूँ
मैं दुर्गा हूँ, सरस्वती हूँ
मैं सीता हूँ, सावित्री हूँ
मैं धरा हूँ, धुरी हूँ
मैं शक्ति हूँ, आसक्ति हूँ
मैं सावन की फुहार हूँ ,
घनघोर घटा हूँ
मैं आस्था हूँ ,विश्वास हूँ
मैं उत्साह हूँ, उल्लास हूं
मैं साधन नहीं साधना हूँ,
आराधना हूँ
ना भोग हूँ, ना भोग्या हूँ
परिपक्व क्षीर निर्झर हूँ
परिवार का गुमान हूँ
ईश्वर का वरदान हूँ
देदीप्यमान लौ हूँ
देदीप्यमान लौ हूँ
मैं मैं हूँ
मैं मैं हूँ
पता : 
ज्ञानवती सक्सेना 
जयपुर (राजस्थान)
-०-

***
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4 comments:

  1. bahut khubsurat likhi he apne ye kavita..shubkamnae mam

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 09 जनवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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