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Wednesday, 25 March 2020

■ इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे?■ (कविता) - अमन न्याती

■ इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे?■
(कविता)
उस महताब के खातिर रात हर रोज होती है,
बंद पड़े दरवाजे पर दस्तक हर रोज होती है,
वो खयाल है मेरे,उनसे अब बचोगी कैसे,
बोला था ना ! इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे ?

हर रोज थोड़ा थोड़ा लिखता हूँ तुम्हे मैं,
समंदर है वो, जहाँ रोज दरिया बन बहता हूँ मैं,
दरिया को समंदर में मिलने से रोकोगी कैसे,
बोला था ना ! इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे ?

दूर कहीं है दिल, धड़कता फिर भी है,
शायद मिलने को मन, मचलता अब भी है,
ये दौर खयालो के अब तुम रोकोगी कैसे,
बोला था ना ! इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे ?
-०-
पता :
अमन न्याती
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)

-०-

***
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8 comments:

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