■ इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे?■
(कविता)
(कविता)
उस महताब के खातिर रात हर रोज होती है,
बंद पड़े दरवाजे पर दस्तक हर रोज होती है,
वो खयाल है मेरे,उनसे अब बचोगी कैसे,
बोला था ना ! इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे ?
हर रोज थोड़ा थोड़ा लिखता हूँ तुम्हे मैं,
समंदर है वो, जहाँ रोज दरिया बन बहता हूँ मैं,
दरिया को समंदर में मिलने से रोकोगी कैसे,
बोला था ना ! इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे ?
दूर कहीं है दिल, धड़कता फिर भी है,
शायद मिलने को मन, मचलता अब भी है,
ये दौर खयालो के अब तुम रोकोगी कैसे,
बोला था ना ! इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे ?
बंद पड़े दरवाजे पर दस्तक हर रोज होती है,
वो खयाल है मेरे,उनसे अब बचोगी कैसे,
बोला था ना ! इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे ?
हर रोज थोड़ा थोड़ा लिखता हूँ तुम्हे मैं,
समंदर है वो, जहाँ रोज दरिया बन बहता हूँ मैं,
दरिया को समंदर में मिलने से रोकोगी कैसे,
बोला था ना ! इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे ?
दूर कहीं है दिल, धड़कता फिर भी है,
शायद मिलने को मन, मचलता अब भी है,
ये दौर खयालो के अब तुम रोकोगी कैसे,
बोला था ना ! इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे ?
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