मेरे बच्चों
(कविता)
आओ बैठो संग साथ
हसे ,खेले ,बोले मन की बात
जानों कुछ मेरा अतीत,बतलाओ अपना आज
सुने,गुणें, समझे मिल कल और आज
कहाँ -कहाँ उलझे तुम ,कहाँ कब रूका मैं
वर्तमान और भूतकाल का अपना-अपना सच
पहचाने इतिहास ,भूगोल, समाज ,धर्म फिर से
कुछ नयी व्याख्याएँ,कुछ पुराने अनुभव से नया गढ़े।।
मेरे बच्चों
आओ बैठे संग -साथ
. ढूंढे फिर से ग्रंथों व कथाओं में छुपा ज्ञान -विज्ञान
अपनाए जो छूटा,टूटा पर था दृढ़ परखा विश्वास
पकाएं समय की आँच पर नये पुराने सत्य
लड़े भय, घुटन, अवसाद, नकरात्मकता से ड़ट कर
लाए फिर से घर, परिवार, कुटंब -कबिला पास
सीखे दिल की आवाज़ सुनने की वही कला
ना कोई पड़े अकेला ,निराश उदास ।।
मेरे बच्चों
आओ बैठे संग -साथ
हवा ,मिट्टी,पानी ,वाणी,रखे खरी- खरी
देश के पेड़, पर्वत , नदियाँ झरने नित बढ़ते जाएं
भूल द्वेष,दुराव, वैमनस्य, झगड़े ,धार्मिक उन्माद
माँगें सुख शांति, भाईचारा, वर्गहीन उन्नत समाज
समय -चक्र आगे बढ़ता, रोक सके ना कोय
. मैं भी सीखूँ ,तुम से नये समय की तकनीक
नशा, उपद्रव, आधुनिकता हैं ये झूठे फंदे
मन से सच्चे, हृदय से निर्मल बनो कर्म के पक्के।।
मेरे बच्चो
आओ बैठे संग -साथ
कल्पना के पंख फैलाओं, भरो इंद्र धनुषी रंग
हसे ,रोएं, दौड़े -भागें, गिरे -उठे सब साथ
अपनों के संग, अपनों के लिए ,अपनों के बीच
अपनत्व फैलाएं, विश्व बने हमारा घर
आतंक, हिंसा, मार -काट, युद्ध हैं विनाशकारी
प्रेम ,अहिंसा, करूणा, दया ,है सच्चा अवलंब।।
मेरे बच्चो ।।।
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डा. नीना छिब्बरजोधपुर(राजस्थान)
-०-
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