नन्हीं सी कली मैं..
(कविता)
एक दिन की नन्ही सी कली मैं ,
शीत में क्यों मुरझा सी रही ।
मात-पिता के होते हुए क्यों ,
मैं अनाथ कहला भी रही।
शीत से कम्पित रही रात भर,
किसने , क्यों मुझको फेंका।
एक दिवस का दोष था कैसा ,
जो उसने मुझमें देखा ।
माँ की ममता क्यों न जागी,
दूध न क्यों स्तन झरा ।
बस देकर के जन्म मुझे क्यों ,
मन से मोह का मान गिरा ।
कोस रही हूँ अपने जन्म को,
कचरे में कचरा होकर।
मुझको तो अपना न सका जो ,
क्या पाए मुझको खोकर।
दोष है मेरा या भगवन का ,
जिसने मुझे बनाया है ।
या बुद्धि स्तर में, जो सबसे ऊपर,
मानव नाम कहाया है।
मनुष्य कोख से जन्म मैं लेकर ,
कोख में ही क्यों जिंदा हूँ।
मातृ शक्ति के नाम को पाकर,
फिर क्यों मैं शर्मिंदा हूँ।
मां, पत्नी और बहिन रूप तो,
नारी पवित्र महान बनी ।
बेटी रूप जो पहली सीढ़ी ,
क्यों जग-पाप समान बनी।
बेटी ही जब जग न होगी ,
और रूप सब शून्य समान।
बेटी पा जो धन्य कहलाए ,
बस दुनियां में वो ही महान।
मात-पिता के होते हुए क्यों ,
मैं अनाथ कहला भी रही।
शीत से कम्पित रही रात भर,
किसने , क्यों मुझको फेंका।
एक दिवस का दोष था कैसा ,
जो उसने मुझमें देखा ।
माँ की ममता क्यों न जागी,
दूध न क्यों स्तन झरा ।
बस देकर के जन्म मुझे क्यों ,
मन से मोह का मान गिरा ।
कोस रही हूँ अपने जन्म को,
कचरे में कचरा होकर।
मुझको तो अपना न सका जो ,
क्या पाए मुझको खोकर।
दोष है मेरा या भगवन का ,
जिसने मुझे बनाया है ।
या बुद्धि स्तर में, जो सबसे ऊपर,
मानव नाम कहाया है।
मनुष्य कोख से जन्म मैं लेकर ,
कोख में ही क्यों जिंदा हूँ।
मातृ शक्ति के नाम को पाकर,
फिर क्यों मैं शर्मिंदा हूँ।
मां, पत्नी और बहिन रूप तो,
नारी पवित्र महान बनी ।
बेटी रूप जो पहली सीढ़ी ,
क्यों जग-पाप समान बनी।
बेटी ही जब जग न होगी ,
और रूप सब शून्य समान।
बेटी पा जो धन्य कहलाए ,
बस दुनियां में वो ही महान।
-०-
पता:
No comments:
Post a Comment