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Saturday, 23 November 2019

फिक्र (लघुकथा) - आभा दवे

फिक्र
(लघुकथा)
बेटू इधर आना ,गौरी के पिताजी ने बड़े प्यार से पुकारा ।
जी पिताजी, गौरी अपना काम छोड़कर पिताजी के पास आकर खड़ी हो गई ।
"कुछ चाहिए पिताजी ? माँ बस अभी थोड़ी देर में ही बाजार से आ जाएगी ।" गौरी ने हंस कर कहा ।
पिताजी ने बड़े प्यार से गौरी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा " थोड़े दिनों के बाद तुम्हारी शादी हो जाएगी । तुम अपने ससुराल चली जाओगी । फिर कहां तुम्हें अपने पिताजी से बात करने का मौका मिलेगा ? आज जी भर कर तुम से बात करना चाहता हूं । पिताजी ने उदास होते हुए कहा ।
"नहीं ऐसा नहीं है पिताजी, मैं आप से रोज फोन पर बात किया करुंगी । हां, ये जरूर है कि आपका स्नेह भरा हाथ सिर पर नहीं होगा ?" गौरी ने रुआंसी होकर कहा ।
गौरी ने अपने हाथ में पकड़ा हुए कागज का टुकड़ा पिताजी को देते हुए कहा "मैंने इस में सारी दवाईयों के नाम और उनका समय लिख दिया है । समय से लेते रहिएगा , अभी तक तो मैं देती आ रही हूं । " इसके आगे गौरी कुछ न कह पाई उसका गला रुधं गया ।
पिताजी की आँखों से भी आंसू छलक पड़े । उन्हें लगा था कि गौरी अपनी शादी की तैयारी में व्यस्त हैं पर ये क्या? उसे तो मेरी ही फिक्र है । कैसे कर पाऊंगा बेटी को बिदा?
-०-
पता:
आभा दवे 
ठाणे (पश्चिम) मुंबई
-०-

***
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