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Tuesday, 21 April 2020

आनंद मंगल (कविता ) - डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया


आनंद मंगल
      (कविता )
हे मानव मत कर गरूर !
ज़िन्दगी है क्षण-भंगुर !!
बन सहज व्यवहार कर !
मानवता का मुकुट धर !!
वरना पछतावा होगा अंत समय,
बना ले जीवन आनंद-मंगल ।।

ईर्ष्या-द्वेष का त्याग कर,
प्रेम-भाव आत्मसात कर ।
ऊँच-नीच का भेद-भाव छोड़ ,
अहंकार का नाता तोड ।
वरना पछतावा होगा अंत समय,
बना ले जीवन आनंद-मंगल ।।

दान-पुण्य की गंगा बहा दे ,
सबसे अपनत्व का नाता जोड़ दे ।
दीन-दुखियों की आह सुन ले ।
सत्कर्म का पूण्य बुन ले।।
वरना पछतावा होगा अंत समय,
बना ले जीवन आनंद-मंगल ।।

छोटे- बड़ों का आदर कर ,
वाणी-विवेक से सादर कर ।
काल-चक्र का सम्मान कर ,
सृष्टि नियंता का अभिवादन कर ।।
वरना पछतावा होगा अंत समय,
बना ले जीवन आनंद-मंगल ।।
-०-
पता:
डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया
सौराष्ट्र (गुजरात)

-०-

***
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