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Thursday, 23 April 2020

जीवन घर तक (ग़ज़ल) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे


जीवन घर तक
(ग़ज़ल)
जीवन घर तक, पर सुखकर है ।
कितना प्यारा लगता दर है ।

अब विराम में भी गति लगती,
हर्ष भरा यह आज सफ़र है ।

जीवन लगता एक ग़ज़ल-सा,
खुशियों से लबरेज बहर है ।

शांत रहो,खामोश रहो सब,
अंधकार के बाद सहर है ।

ऊंचा उड़ना नहीं रुकेगा,
कायम मेरा हर इक पर है ।

वीराना भाता है अब तो,
मीठा लगता हर इक सुर है।

रहे बात यह अंतरमन में,
कभी न ठहरा सदा क़हर है ।

'शरद' अभी भी रौनक सारी,
कल मेरा अब से बेहतर है ।-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
मंडला (मप्र)
-०-

***
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