जीवन घर तक
(ग़ज़ल)
जीवन घर तक, पर सुखकर है ।
कितना प्यारा लगता दर है ।
अब विराम में भी गति लगती,
हर्ष भरा यह आज सफ़र है ।
जीवन लगता एक ग़ज़ल-सा,
खुशियों से लबरेज बहर है ।
शांत रहो,खामोश रहो सब,
अंधकार के बाद सहर है ।
ऊंचा उड़ना नहीं रुकेगा,
कायम मेरा हर इक पर है ।
वीराना भाता है अब तो,
मीठा लगता हर इक सुर है।
रहे बात यह अंतरमन में,
कभी न ठहरा सदा क़हर है ।
'शरद' अभी भी रौनक सारी,
कल मेरा अब से बेहतर है ।-०-
कितना प्यारा लगता दर है ।
अब विराम में भी गति लगती,
हर्ष भरा यह आज सफ़र है ।
जीवन लगता एक ग़ज़ल-सा,
खुशियों से लबरेज बहर है ।
शांत रहो,खामोश रहो सब,
अंधकार के बाद सहर है ।
ऊंचा उड़ना नहीं रुकेगा,
कायम मेरा हर इक पर है ।
वीराना भाता है अब तो,
मीठा लगता हर इक सुर है।
रहे बात यह अंतरमन में,
कभी न ठहरा सदा क़हर है ।
'शरद' अभी भी रौनक सारी,
कल मेरा अब से बेहतर है ।-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
-०-
Very nice creation
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