(कविता)
हर तरफ धुंध है धुआं है।
हर एक का दम समस्या से फूला हुआ है।
इस बात पर मीटिंग बैठा रहे है।
प्रदूषण की इंतहा हो गई ।
रही सही जिंदगी फना हो गई।
सरकारी तंत्र अपना कर्तव्य निभा रहे है।
प्रदूषण कितना है प्रतिशत बता रहे।
कौन कितना धुआं पी रहा ।
सिगरेट में गिन के बता रहे ।
कहते है विकास की रफ्तार बढ़ रही।
मोत की नई परिभाषा गढ़ रही ।
रोकना है प्रदूषण की गति ।
उपयोग में लाओ अपनी मति।
सब के सब प्लास्टिक में खा रहे ।
अवशेषों को चारों ओर फैला रहे।
प्रदूषण कम करो का नारा लगा रहे।
क्यों नहीं सीमित करते उपयोग।
मत करो संसाधनों का दुरुपयोग।
ये धूल उड़ती हुई गाड़ियां ।
फेफड़ों की बढ़ती बीमारियाँ।
आँगन से तुलसी मिटाते जारहे।
जूही चंपा की जगह केक्टस लगा रहे।
पटाखों के नाम प्रदूषण लगा रहे ।
खुद खेत में पराली जला रहे।
जहरीली हवा खुद पी रहे ।
दूसरों को पीने को मजबूर कर रहे ।
सिर पर हाथ धरे मुंह पर मास्क लगा रहे।
सारे के सारे प्रदूषण का मातम मना रहै
हर तरफ धुंध है धुआं है।
हर एक का दम समस्या से फूला हुआ है।
इस बात पर मीटिंग बैठा रहे है।
प्रदूषण की इंतहा हो गई ।
रही सही जिंदगी फना हो गई।
सरकारी तंत्र अपना कर्तव्य निभा रहे है।
प्रदूषण कितना है प्रतिशत बता रहे।
कौन कितना धुआं पी रहा ।
सिगरेट में गिन के बता रहे ।
कहते है विकास की रफ्तार बढ़ रही।
मोत की नई परिभाषा गढ़ रही ।
रोकना है प्रदूषण की गति ।
उपयोग में लाओ अपनी मति।
सब के सब प्लास्टिक में खा रहे ।
अवशेषों को चारों ओर फैला रहे।
प्रदूषण कम करो का नारा लगा रहे।
क्यों नहीं सीमित करते उपयोग।
मत करो संसाधनों का दुरुपयोग।
ये धूल उड़ती हुई गाड़ियां ।
फेफड़ों की बढ़ती बीमारियाँ।
आँगन से तुलसी मिटाते जारहे।
जूही चंपा की जगह केक्टस लगा रहे।
पटाखों के नाम प्रदूषण लगा रहे ।
खुद खेत में पराली जला रहे।
जहरीली हवा खुद पी रहे ।
दूसरों को पीने को मजबूर कर रहे ।
सिर पर हाथ धरे मुंह पर मास्क लगा रहे।
सारे के सारे प्रदूषण का मातम मना रहै
-०-
अर्विना
प्रयागराज (उत्तरप्रदेश)
-०-
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