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Friday, 15 November 2019

हे पवन (कविता) - दुल्कान्ती समरसिंह (श्रीलंका)


हे पवन
(कविता)
नज़र दे रहे तुझे,
मैं हँसी, हँसी
प्यार से, प्यार से
मैं हँसी, हँसी ...
घर के सामने रहे,
तेरी ओर देखते
प्यार से, प्यार से
मैं हँसी हँसी ...

प्रभात में
तेरा चेहरा
भीग गया था ..
दोपहर में
पागल था ये
मेरी आँखें जला दी ।।

हे , पवन !
ईर्ष्या है क्या ?
क्या यह एक मज़ाक है ?
चेहरे छ: हैं
बारह नेत्र हैं
क्या मेरा रूप है ये ?
-०-
दुल्कान्ती समरसिंह
18, ग्रीन्फील्ड एटाविल, कलुतर, श्रीलंका

-०-

***
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