खुशी
(लघुकथा)
शहर में स्वच्छता अभियान जोरों पर था। सुबह-सुबह ही नगर निगम की गाड़ी गली, मोहल्ले, सड़कों की सारी जूठन व कचरे उठा कर ले गयी थी। सड़क एकदम साफ नजर आ रही थी। चार श्वान-शावक पास वाली गली से निकलकर सड़क पर आ गये थे और कचरे वाली जगह पर कुछ ढूंंढ़ रहे थे।चार-पाँच साल की एक बच्ची बस स्टाप पर अपने स्कूल बस के इंतजार में खड़ी थी। वे शावक उसके पास आकर बैठ गये और कातर नजरों से उसकी ओर देेेखते हुए अपनी छोटी-छोटी पूँछें हिलाने लगेे। फिर वापस उसी कचरे वाली जगह पर चले गये।
वह बच्ची धीरे से उनके पास गयी। स्कूल बैग से अपना लंच बॉक्स निकाला और सारी पूड़ी-भूंजिया उनकेे सामने उलट दी। वे चारों खाने पर टूट पड़े।वह एक क्षण को रुककर उन्हें खाते हुए देखने लगी। वे चारों जोर-जोर से अपनी पूँछें हिला रहे थे और उसे देख रहे थे। वह खुश हो गयी।
बस का हॉर्न सुनाई पड़ा, तो वह मुड़ी, और दौड़ते हुए बस में चढ़ गयी। आज वह निकिता के साथ लंच कर लेेगी। रोज कहती रहती है वह......!
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आनंद निकेत
बाजार समिति रोड
पो. - गजाधरगंज
बक्सर ( बिहार )
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