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Wednesday, 19 February 2020

कभी कभी दर्द (ग़ज़ल) - राजीव कपिल

कभी कभी दर्द
(ग़ज़ल)
कभी कभी दर्द अच्छा लगता है।
दूर बजता ढोल अच्छा लगता है।।

कांधे पे रख के सर जिसके रो सके
वो हमदर्द अच्छा लगता है।।

करू मिस्ड कॉल तो कॉल करती है
ये अंदाज उसका अच्छा लगता है।।

औरो से बातें करती बेतकल्लुफ वो
और मुझसे शर्माना अच्छा लगता है।।

कभी जब रूठती वो बिन बात के
उसको मनाना अच्छा लगता है।।

क्या हुआ जो बहर में लिख पाता नही
वो कहती तुमको पढ़ना अच्छा लगता है।।

वो बैठे पास में फिर न बोले चाहे
मुझे तो साथ उसका अच्छा लगता है।।

क्यूँ जाने ट्रांसफर से कतराते है लोग
मुझे पहाड़ पर चढ़ना अच्छा लगता है।।

रहूँ कही भी या सफर में रहूँ
घर आकर ही अच्छा लगता है।।

बेटी तो मेरे दिल की धड़कन है
पर बेटा भी अच्छा लगता है।।

गूंजे जिस आंगन किलकारी बिटिया की
कपिल वो घर अच्छा लगता है।।
-०-
पता:
राजीव कपिल
हरिद्वार (उत्तराखंड)

-०-

***
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