(मुक्तक)
बिछ गए
फिर से -
बर्फ - बिछौने ।
सूरज -
रीस गया फिर
धरा से ।
पड़ा जो
धुंध में -
मुंह छुपाके ।
झरे
कपोत के फिर -
पंख सलौने ।
हवा रेशमी
पांव-
बांध पायल ।
रुनझुन से
करती -
तन - मन घायल ।
हरित चुनर
और -
शबनमी खिलौने ।
पहन
धूप के -
मफ़लर - स्वेटर ।
खपरैल कांपे -
थर - थर , थर - थर ।
रात ताड़ - सी
ये दिन हैं -
बौने ।
पेड़
बर्फ की -
चादर ओढ़े ।
सर्द हवा के
दिन - रात झेले -
कौड़े ।
भरें कुलांचें
अब -
धूपई छौने ।
-०-
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