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Wednesday, 19 February 2020

बर्फ के बिछौने ! (मुक्तक) - अशोक 'आनन'


बर्फ के बिछौने !
(मुक्तक)
बिछ गए
फिर से -
बर्फ - बिछौने
सूरज -
रीस गया फिर
धरा से
पड़ा जो
धुंध में -
मुंह छुपाके
झरे
कपोत के फिर -
पंख सलौने
हवा रेशमी
पांव-
बांध पायल
रुनझुन से
करती -
तन - मन घायल
हरित चुनर
और -
शबनमी खिलौने
पहन
धूप के -
मफ़लर - स्वेटर
खपरैल कांपे -
थर - थर , थर - थर
रात ताड़ - सी
ये दिन हैं -
बौने
पेड़
बर्फ की -
चादर ओढ़े
सर्द हवा के
दिन - रात झेले -
 कौड़े
भरें कुलांचें
अब -
धूपई छौने
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (म.प्र.)

-०-




***
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