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Thursday, 16 April 2020

खुल गई आँखे (लघुकथा) - डॉ. शैल चन्द्रा

खुल गई आँखे
(लघुकथा)
डायमंड ज्वेलर्स के मालिक सेठ रोशनदास हैरान परेशान से बैठे थे। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनका एक कारोबारी मित्र जो चार दिन पहले उनके दुकान पर मिलने आया था वह सीधा विदेश से आया था। आज ही उनको सूचना मिली कि उनको कोरोना पॉजिटिव पाया गया है। तब से वे बहुत ज्यादा डरे हुये थे।
अब कुछ ही देर में उनको क्वारन टाईन में भेजा जाएगा। उन्होंने सेठानी से कहा,-" सुनो, घर में अस्सी लाख रुपए नगद रखे हुए हैं। मैनें सारे पैसे तहखाने में छुपा कर रखे हैं। यह घर दुकान सब तुम्हारे नाम करवा दूंगा बस तुम मेरी अच्छी तरह इलाज करवाना।"
यह सुनकर सेठानी ने आँखों में आँसू भरकर कहा,-"सेठ जी, चाहे तुम्हारे पास करोड़ रुपए रहे पर यह रोग लाइलाज़ है। ऐसा होता तो दुनिया के धनवान देशों में कोरोना से कोई नहीं मरता।आपने पूरी ज़िंदगी कंजूसी कर -कर के यह लाखों रुपए इकट्ठा किया। न ढंग का खाया न पिया न ही खिलाया ।न जाने कितने मजदूरों को सताया।कितनों को गिरवी रखने के बहाने उनके जमीन जेवर मकान आपने लूटा। सोने -चाँदी में मिलावट कर बेचा। अब भला यह क्या काम का? मुझे कोई धन दौलत नहीं चाहिये और क्या गारंटी है कि मुझे कोरोना नहीं होगा। मैं तो आप के साथ ही हूँ। ऐसा करते हैं कि इस अस्सी लाख में पचास लाख सरकार के कोरोना आपदा कोष में दान कर देते हैं। ईश्वर की कृपा से अगर जीवित बच गए तो बाकि के पैसे को दान पुण्य और अच्छे जीवनयापन में उपयोग करेंगें।"
सेठानी की बात सुनकर सेठ रोशनदास की आँखे खुल गई।
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पता


 डॉ. शैल चन्द्रा
धमतरी (छत्तीसगढ़)
-०-
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