भाव गङ्गा
(कविता)
" भाव गङ्गा ' मे बहती हूँ मै
भाव मे हि गोता लगाती हूँ मै
भाव गङ्गा मे तैर-तैर कर
'ज्ञान गङ्गा ' मे नहाती हूँ मै
" भाव गङ्गा ' मे बहती हूँ मै
भाव मे हि गोता लगाती हूँ मै
भाव गङ्गा मे तैर-तैर कर
'ज्ञान गङ्गा ' मे नहाती हूँ मै
'ज्ञान गङ्गा ' के सागर मे
'गहराई ' तक जाती हूँ मै
भाव सागर मे गोता लगा के
' ज्ञान की मोति ' चुन लाती हूँ मै
ज्ञान की मोति चुनते-चुनते
' प्रेम की ज्योति ' पाती हूँ मै
प्रेम भाव के ' स्नेहिल-मोति '
' सबमे बाँटना ' चाहती हूँ मै । "....!?
-०-
'गहराई ' तक जाती हूँ मै
भाव सागर मे गोता लगा के
' ज्ञान की मोति ' चुन लाती हूँ मै
ज्ञान की मोति चुनते-चुनते
' प्रेम की ज्योति ' पाती हूँ मै
प्रेम भाव के ' स्नेहिल-मोति '
' सबमे बाँटना ' चाहती हूँ मै । "....!?
-०-
उर्मिला पन्त पाण्डेय 'हंसु्र्मिला'
ज्ञानेश्वर , काठमाण्डौँ , नेपाल
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