आग बुझने न देना
(कविता)
जो जली है सीने में ,
वो आग बुझने न देना ।
आयेगे तूफान क ई राहों में,
भरकर उन्हे बाँहों में ।
टकराने देना जिस्म से,
लेना जी भर साँसें ।
पर साँसों मे अपने उतरने न देना ।।
वो आग बुझने मत देना ।।
तोड़कर किनारे साहिल के ,
चल देना पास मंजिल के।
लोग आयेंगें बातें लेकर,
हँसेगें ऐब तुम्हारे कहकर।
तानों से खुद को बिखरने न देना ।।
वो आग बुझने न देना।।
धड़कनो पर है समय का पहरा ,
वक्त के बाद भला कौन ठहरा ।
बिछी है जिंदगी की बिसात ,
सोच कर चलना चाल ।
व्यर्थ कोई पल जाने न देना ।।
वो आग बुझने न देना ।।-०-
वो आग बुझने न देना ।
आयेगे तूफान क ई राहों में,
भरकर उन्हे बाँहों में ।
टकराने देना जिस्म से,
लेना जी भर साँसें ।
पर साँसों मे अपने उतरने न देना ।।
वो आग बुझने मत देना ।।
तोड़कर किनारे साहिल के ,
चल देना पास मंजिल के।
लोग आयेंगें बातें लेकर,
हँसेगें ऐब तुम्हारे कहकर।
तानों से खुद को बिखरने न देना ।।
वो आग बुझने न देना।।
धड़कनो पर है समय का पहरा ,
वक्त के बाद भला कौन ठहरा ।
बिछी है जिंदगी की बिसात ,
सोच कर चलना चाल ।
व्यर्थ कोई पल जाने न देना ।।
वो आग बुझने न देना ।।-०-
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