आई बहार
(कविता)
बरखा लाई बहार सखी रीरिमझिम पड़े फुहार सखी री
जब घिर आएं घटाएं काली
मोर दये पँख पसार सखी री
भीगी-भीगी ऋतु ये,भीगा मौसम
भीगी गली हमार सखी री
गलियन संग-संग भीगे नैना
पिय की राह निहार सखी री
रिमझिम पड़े फुहार सखी री।
सौंधी महकन महकें मक्का री
ठंडी चली बयार सखी री
डारन-डारन पड़ गयो झुलना
दियो बाबुल संदेश पठाय सखी री
आ गयी मोरी संगी सहेली
मेरो मन अकुलाय सखी री
रिमझिम पड़े फुहार सखी री
बचन पपीहरा बान चलावत
चैन नही घर-द्वार सखी री
हरी-हरी मेंहदी हाथों रच गयी
कर बैठी सिंगार सखी री
मनवा डोले पातन जैसा
रिमझिम पड़े फुहार सखी री
आई आई बहार सखी री
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