वसंत पर दोहे
(दोहे)
पीत चुनरिया ओढ़कर, आई बसंत बहार।
धरा वासंती हो गई,...कर सोलह श्रंगार।।
पीत चुनरिया ओढ़कर, आई बसंत बहार।
धरा वासंती हो गई,...कर सोलह श्रंगार।।
मखमली सी धूप खिली, भोर हुई अब जाग।
चहचहाती चिड़ियाँ भी, करती कलरव राग।।
पतझड़ का मौसम हुआ,...पत्ते गिरे हजार।
नव-पल्लव अंकुरित हुए, आई नयी बहार।।
पीली सरसों खेत में, गेंदा, पुष्प, पलास।
रंगोली सजती यहाँ, मन में हर्षोल्लास।
गुंजन करती तितलियाँ, भौरों का आगाज।
फुलवारी चहुँओर है, पीत सजा वनराज।।
धरा बसंतमय हो गई, खुशहाली चहुँओर।
बारिश का मौसम हुआ, वन में नाचे मोर।।-०-
चहचहाती चिड़ियाँ भी, करती कलरव राग।।
पतझड़ का मौसम हुआ,...पत्ते गिरे हजार।
नव-पल्लव अंकुरित हुए, आई नयी बहार।।
पीली सरसों खेत में, गेंदा, पुष्प, पलास।
रंगोली सजती यहाँ, मन में हर्षोल्लास।
गुंजन करती तितलियाँ, भौरों का आगाज।
फुलवारी चहुँओर है, पीत सजा वनराज।।
धरा बसंतमय हो गई, खुशहाली चहुँओर।
बारिश का मौसम हुआ, वन में नाचे मोर।।-०-
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