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Saturday, 1 February 2020

नया साल (कविता) - राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित"


नया साल
(कविता)
अच्छे दिन की आस में उन्नीस गुजर गया।
दोस्तों फिर से संभलने का वक़्त आ गया।।

मायूस देखा है आदमी को प्याज के लिए।
भाव बढ़ते बढ़ते प्याज कहाँ से कहाँ आ गया।।

रात भर जी एस टी ने सोने नहीं दिया आदमी को।
नये सामान खरीदने का लो वक़्त आ गया।।

पुराने नोट सा मन हो गया आदमी का दोस्तों।
अब नये नोट जैसा बदलने का वक्त आ गया।।

नया भारत बनेगा बुलेट ट्रेन चलेगी देश में।
कलाम के सपनों का भारत बनाने का वक़्त आ गया।।

गांधी की अहिंसा का पाठ फिर पढ़ने की जरूरत है।
देश मे हिंसक घटनाओं को रोकने का वक़्त आ गया।।

राम मन्दिर भी बनेगा लेकिन राम कौन बनेगा ।
सत्य के लिए असत्य से लड़ने का वक़्त आ गया।।

मासूमों के साथ जो करते हैं अत्याचार दोस्तों।
उन्हें फाँसी पर लटकाने का वक्त आ गया।।

देश मे संस्कार सभ्यता जीवित कैसे रहे।
मानवीय मूल्यों की स्थापना का फिर वक़्त आ गया।।
-०-
राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित"
कवि,साहित्यकार
झालावाड़ (राजस्थान)

-०-


***
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