(कविता)
(कुकुभ छंद गीत)
जिसके बिन जीवन मे तम है ,दीप वही प्रकाशित नारी
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित वह क्यारी।
त्याग ,समर्पण ,दया,शीलता ,सब मिल नारी बनती है।
कभी तोड़ने अहं दुष्ट का , चण्ड रूप भी धरती है ।
भिन्न -भिन्न रुपों को धारे , दुर्गा की है अवतारी ।
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित वह क्यारी ।
नारी है बहते पानी सम ,हर स्थिति में ढल जाती ।
पुत्र पले जब लाड़ चाव से ,पुत्री यूँ ही पल जाती ।
जननी भी है जग पालक भी ,नहीं किसी क्षण वह हारी ।
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित वह क्यारी ।
नमन करें इस महा शक्ति को ,नारी जग की मर्यादा ।
संस्कार की शाला नारी , प्रेम लुटाती वह ज्यादा।
आदि काल से पूजित नारी , रहती हर नर पर भारी ।
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित वह क्यारी ।
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