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Monday, 8 March 2021

नारी तुम्हें नमन (कविता) - रीना गोयल

नारी तुम्हें नमन
(कविता)
(कुकुभ छंद गीत)

जिसके  बिन जीवन मे तम है ,दीप वही  प्रकाशित नारी 
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित वह क्यारी।
त्याग ,समर्पण ,दया,शीलता ,सब मिल नारी बनती है।
कभी तोड़ने अहं दुष्ट का , चण्ड रूप भी धरती है ।
भिन्न -भिन्न रुपों को धारे , दुर्गा की है अवतारी  ।
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित वह क्यारी  ।

नारी है बहते पानी सम ,हर स्थिति में ढल जाती ।
पुत्र पले जब लाड़ चाव से ,पुत्री यूँ ही पल जाती  ।
जननी  भी है जग पालक भी ,नहीं किसी क्षण वह हारी ।
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित वह क्यारी ।

नमन करें इस महा शक्ति को ,नारी जग की मर्यादा ।
संस्कार की शाला नारी  , प्रेम लुटाती वह ज्यादा।
आदि काल से पूजित नारी , रहती हर नर पर भारी ।
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित वह क्यारी  ।
-०-
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)




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