दिवाली आई
(कविता)
दिवाली आई- दिवाली आई , खुशियों भरी दिवाली आई ।
जगमग - जगमग दीप जले हैं , कितनी सुन्दर, कितनी प्यारी ,लगती ये रात सुहानी ।
झिलमिल- झिलमिल करती देखो अमावस की रात लगे प्यारी ।
बुढ़ा- बच्चा हर कोई देखो , सब को है आज खुशी निराली ।
देख धरा का प्रजवल्लित नज़ारा , चांदनी भी हो गई पानी - पानी ।
हर सु पटाखे और मिठाई , मिल रहे गले सब ग़ैर और भाई - भाई ।
दियों की सुन्दर पंक्तियों ने कैसी प्यारी धरा सजाई , खुशियों की बौछार लाई , जीवन में उपहार लाई ।
रंग- बिरंगे रंगों से सजी देखो हर सु रंगोली लाई , छत - मुंडेर, आंगन देखो सब ओर है ज्योति जगमगाई ।
नील- गगन के तारे सारे , धरती पर हो जैसे बिछे प्यारे ।
दिवाली तो है त्योहार रईसों का , गरीब की कहां मनती दिवाली , जिस रोज़ भूखे पेट ना सोना पड़े , उस रोज़ ही हो जाती ग़रीब की दिवाली ।
काश एक चिराग़ हर घर की देहरी पर जलता रहे , इस - उम्मीद की रोशनी करता रहे , अपनी चमक से निराशा के तम को भरता रहे ।
मां लक्ष्मी से सब अरदास करें , सब के भरपूर वो भंडार भरे ।
हर गांव और हर नगर में कैसी देखो खुशहाली छाई ।
दिवाली आई - दिवाली आई , खुशियों भरी दिवाली आई ।
पता
प्रेम बजाज
जगाधरी, यमुनानगर (हरियाणा)
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