हत्यारों को बापू
(गीत)
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
दुख देते हैं जानबूझ कर,
दुखियारों को बापू।
महिमामंडित करते हैं हम,
हत्यारों को बापू।।
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देश जूझता आज तुम्हारा,
मजधारों में पल पल।
बढ़ते हैं विपरीत दिशा में,
छलिया करते हैं छल।।
बेच रहे हैं धनवानो को,
निर्धन के हक सारे।
श्रमजीवी मजबूर हो गए,
फिरते मारे मारे।।
गिरवी रखनेको आतुर घर,
दीवारों को बापू।
महिमामंडित करते हैं हम,
हत्यारों को बापू।।
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व्यक्ति पूजा करने वाले,
देशभक्त कहलाते।
देशभक्त बेबस लगते हैं,
देश निकाला पाते।।
रहे प्रिय जो भारतमां को,
अपमानित होते हैं।
मनकी कहने किससे जाएं,
मन ही मन रोते हैं।।
करते तेज अहिंसावादी
तलवारों को बापू।
महिमामंडित करते हैं हम,
हत्यारों को बापू।।
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सत्य अहिंसा सत्याग्रह के,
अब लाले पड़ते हैं।
देशद्रोहियों के सीनों पर,
हम मेडल जड़ते हैं।।
देश उसी का माना जाता,
जिसने अपना माना।
नाम भलेकुछ धर्म भलेकुछ,
जिसका देश ठिकाना।।
कुछ नाबीना न्योत रहे हैं,
अंधियारों को बापू।
महिमामंडित करते हैं हम,
हत्यारों को बापू।।
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प्रजातंत्र की करें वकालत,
वंशवाद के रक्षक।
सेवा के पथ को त्यागा है,
बने हुए हैं भक्षक।।
जनकल्याण रखा खूंटी पर,
अपना घर भरते हैं।
अपराधी रेहबर बन बैठे,
कब किससे डरते हैं।।
"अनंत"विजयी घोषितकरते,
हम हारों को बापू बापू।
महिमामंडित करते हैं हम,
हत्यारों को बापू।।
-0-अख्तर अली शाह 'अनन्त'
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