परिवर्तन
(लघुकथा)
जब से रिश्ता हुआ था तब से हर दूसरे तीसरे दिन विशाल के पापा का फोन आ जाता था कभी किसी खर्चे को लेकर कभी किसी रीति रिवाज को लेकर तीस लाख के बजट से बढ़ते बढ़ते बजट पचास भी पार करने लगा था
मै रोज उन्हे परेशान देखती थी पर क्या कर सकती थी । अतुल बचपन से हमारे घर आता था बचपन मे घर घर खेलते खेलते कब हम बड़े होकर भी घर बसाने का सपना देखने लगे पता ही ना चला था । मै ब्राहमण कुल की कन्या और वो कायस्थ कुल का लड़का पर प्यार कब देखता है जात पात ......कब दबे पांव सपनो ने हमे एक दूसरे का बना दिया पता ही न चला ।
वो मेरी हर बुराई जानता था मै उसकी हर खूबी ये मेल जीवन यापन के लिये बहुत था और क्या चाहिये पर पापा को जबसे पता चला था उन्होने सख्त हिदायत दे दी थी मेरी शादी वो बिरादरी के बाहर किसी हालत मे न करेगें । मां का क्या वो मूक बधिर सी हो जाती थी पापा के सामने ........खैर मैने भी घुटने टेक दिये पापा की जिद के आगे ।आनन फानन मे उन्होने विशाल से मेरा रिश्ता तय कर दिया ।
आज सुबह पापा की तेज आवाज सुनकर मै और मम्मी दौड़कर आये तो देखा पापा चिल्ला कर कह रहे थे देखिये सहाब मै आप से हाथ जोड़ कर विनती कर रहा हूं कि इससे ज्यादा मै कुछ नही कर पाऊंगा मेरी बेटी पढ़ी लिखी सक्षम है वही दहेज है अगर आपको मंजूर नही तो मुझे माफ कीजिये...............
फिर पसीना पोछंते हुये..... उन्होने मुझे आवाज दी बेटी बहुत दिन से अतुल नही आया आज शाम को उसे खाने पर बुलाओ ।.........
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पता
अपर्णा गुप्ता
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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Very nice creation
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