पराई बेटियां
(कविता)
गीतिका छन्द-
दो घरों को हैं सजाती बेटियां
पर परायी ही कहाती बेटियां ।
हाथ से दोनों लुटाएं वो हसीं,
जब कभी आँगन में आती बेटियां ।
हर थकन से फिर मिले आराम है ,
खूब खुल जब खिलखिलाती बेटियां ।
आत्मा में है बसी पितु मात की ,
फिर पराये घर क्यों जाती बेटियां।
बन सुकोमल फूल हर इक़ बाग का ,
प्रीत की बगिया सजाती बेटियां ।
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