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Thursday, 12 March 2020

गर कुछ पेड़ लगाए होते (ग़ज़ल) - डॉ. रमेश कटारिया 'पारस'


गर कुछ पेड़ लगाए होते
(ग़ज़ल)
गर कुछ पेड़ लगाए होते
घनी धूप में साए होते

पानी बदल दिया होता तो
कमल ना ये मुरझाये होते

वे भी खफा नहीँ रह पाते
दिल से यदि मुस्काये होते

नफ़रत को कोई जगह न मिलती
यदि गीत प्रेम के गाए होते

हम तुम जुदा कभी ना होते
उसने यदि मिलवाये होते

संसद कभी ना ऐसी बनती
यदि चुन कर पहुंचाये होते

सबको अपने हक़ मिल जाते
यदि सबने फ़र्ज निभाए होते

स्वार्थ अगर आडे ना आता
तो अपने भी ना पराए होती

भूखा कोई नहीँ सोता यदि
हक़ ना किसी के खाये होते

अन्त समय में ना पछताते
यदि कुछ पुण्य कमाएं होते

पारस यदि समझौता करते
सारे जग में छाये होते
-०-
पता:
डॉ. रमेश कटारिया 'पारस'
ग्वालियर (मध्यप्रदेश)
-०-



***
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