बचपन
(आलेख)
कच्चे फल को आदमी तो क्या पक्षी में नहीं तोड़ते , क्योंकि वे जानते हैं ,यह फल पूरी तरह से नहीं पका । जब तक वह अच्छी तरह से नहीं पकता , तब तक वह सुरक्षित रहता है । इसी प्रकार मनुष्य के जीवन में भी एक अवस्था ऐसी आती है , जिसमें वह सुरक्षित रहता है अर्थात उसका किसी के साथ भेदभाव नहीं होता और जीवन की इस आस्था का नाम है -- बचपन ।
बच्चा जब घर की दहलीज से बाहर कदम रखता है तो उसकी नजर में सभी अपने होते हैं , कोई पराया नहीं होता । वह अपने घर वालों के साथ , आस- पड़ोस वालों के साथ , खेलना -कूदना ,पढ़ना -लिखना इत्यादि जो भी गतिविधि करता है ,उस गतिविधि में बिताया गया समय , बचपन कहलाता है ।
आंधी के आने पर , वृक्षों के सूखे पत्ते अचानक टूटने लगते हैं , क्योंकि सूखे पत्ते कमजोर होते हैं और जो पत्ते हरे होते हैं , वे आसानी से नहीं टूटते । इसी तरह बचपन भी हरे पत्तों के समान होता है । इस अवस्था में केवल खुशियां ही खुशियां होती है ,गम का कहीं नामोनिशान नहीं होता । जीवन में आनंद और उत्साह की अधिकतर बारिश , लगभग इसी अवस्था में होती है ।
आईना कांच का जरूर होता है , परंतु उसमें चेहरा स्पष्ट दिखाई देता है । कांच की जगह अगर उस आईने को किसी दूसरी धातु से बनाया जाए , तो उसमें चेहरा साफ दिखाई नहीं देगा । इसी तरह बचपन भी एक आईने के समान है , इसमें बच्चे की पवित्रता बिल्कुल साफ दिखाई देती है । उनका मन साफ होता है अर्थात उसमें मन में किसी धर्म एवं जाति के प्रति हीन -भावना नहीं होती ।
हमें बचपन में खेलने का जो अवसर मिलता है , उसके बाद वह जीवन में कभी नहीं मिलता । बचपन के खेल निराले होते हैं । आंख-मिचौली , गुल्ली -डंडा ,चोर- सिपाई आदि खेलों को हम भूल नहीं सकते । कभी-कभी तो बच्चों की खेल- खेल में मार -पिटाई भी हो जाती है , परंतु कुछ ही देर में , सभी साथ मिलकर खेलना आरंभ कर देते हैं । वे कभी एक- दूसरे से गिला- शिकवा नहीं करते ।
बच्चे बरसात के मौसम में भीगना ज्यादा पसंद करते हैं । ऐसे समय में वे नहाते हैं ,खेलते हैं और पूरे समूह के साथ मौज- मस्ती करते हैं । उनका खाना- पीना और गुनगुनाना सभी एक साथ होता है । जब तक बचपन होता है , वे जीवन का सच्चा आनंद प्राप्त करते हैं । इसलिए प्रत्येक इंसान को अपना बचपन जीवन भर याद रहता है ।
दुश्मन के घर की तरफ , हम कभी आंख उठाकर नहीं देखते । हमारा बच्चा जब किसी दुश्मन के घर चला जाता है , वे उसके साथ अपने बच्चों जैसा व्यवहार करते हैं । उसे खिलाते हैं , पिलाते हैं , सब कुछ पता होते हुए भी उससे लाड -प्यार करते हैं ,क्योंकि बच्चा भगवान का रूप होता है अर्थात सभी के दिलों में बच्चों के प्रति प्रेम की भावना होती हैं ।
मेले की शोभा हमेशा लोगों से बढ़ती है और उस मेले में जितने ज्यादा लोग होंगे , वह उतना ही ज्यादा अच्छा लगेगा । इसी तरह जब कोई त्यौहार आता है , वह बच्चों के बिना अधूरा लगता है । त्यौहारों के शुभ अवसर पर , बच्चे ही सबसे ज्यादा खुशी मनाते हैं । ऐसे-ऐसे अवसरों पर वे कई दिन पहले ही , उनका भरपूर आनंद उठाने लगते हैं ।
सुबह -सुबह सूरज के निकलने ही ,कलियों के घूंघट अपने आप खुलने लगते हैं । उन कलियों में छुपी हुई महक , धूप लगने से चारों तरफ फैल जाती है ।इसी प्रकार बचपन भी एक कली के समान है ।परिवार एवं समाज का प्रभाव जब इसके ऊपर पड़ता है ,इससे हंसी -खुशी की महक उत्पन्न होती है और उस महक से हमारा घर- आंगन महकने लगता है ।
आज हम धर्म , जाति एवं वर्ग के आधार पर बंटे हुए हैं । लोगों में भेदभाव का जहर फैलता जा रहा है , परंतु बचपन इन सब चीजों से दूर है । बचपन का कोई मजहब नहीं होता , इसका मजहब तो केवल प्रेम है । मंदिर हो चाहे मस्जिद , इनकी नजर में सब एक समान है अर्थात् कोई अपना-पराया नहीं ।
मुसीबत के समय , लगभग सभी व्यक्ति परमात्मा को याद करते हैं । इसी तरह जब हम जीवन के सुनहरे पलों को याद करते हैं तो वहां बचपन हमें सबसे पहले याद आता है ।
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बलजीत सिंह
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