रोटी बंदी है
(कविता)महानगर के कारागृह में,
रोटी बंदी है.
गगरे की गरदन से देखी,
लड़ी हथौड़ी कल,
बोतल में ही ढूँढ़ रही थीं,
बड़ी-पकौड़ी हल,
कुछ भी ठीक नहीं है, युग की
आदत गंदी है.
विश्व आज है एक हुआ, पर,
घर-जन छूट गए,
मेलजोल के संवादों के,
बरतन फूट गए,
बाजारों में भीड़भाड़ है,
फिर भी मंदी है.
साधुवाद की भाषाओं के,
शाश्वत बोल नहीं,
मूलतया मर्यादाओं का,
अब है मोल नहीं,
प्रेमचन्द के होरी के घर,
कब नौचंदी है.
नंदनवन का नाम हो चुका,
ग्रन्थों का किस्सा,
रामलला की जन्मभूमि में,
धर्मों का हिस्सा,
सदियों से पूजा का पत्थर,
शिव का नंदी है.
-०-
पता:
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ (उत्तरप्रदेश)
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