सड़क पर सड़क नहीं
(ललित आलेख)
(ललित आलेख)
सड़कों पर शहर है। शहरी लोग है उसमें गांवों के आंचलिक लोग भी है जो किसी काम से शहर में आए हैं। कुछ रोजगारपरक है। कुछ व्यावहारिक भी। कुछ टाइमपास फ़ुरसतिया भी है। सड़कों पर गाड़ियां भी है। दुपिहया से लेकर चौपाया तक नए मॉडल से लेकर खटारा तक अपनी औकात से लेकर फैशन तक कर्ज में डूबे और कब्जियत से अघाए लोग सड़कों पर है। वे क्या करें, क्या न करें, बेबस लोग सड़कों पर समझदार लोग सावर्जनिक व्यवस्था का उपयोग कर रहे वे तनिक समझदार है। जरा सोचिए! जब सड़क नहीं तो महंगी गाड़ियों की आवश्यकता!सोचिये, आप ने गाड़ी ली। इंटरेस्ट रेट डाउन है। बायर है नहीं। इंस्टालमेन्ट भरना इतना आसान नहीं। घरेलू आदमी अनेक विपदाओं से घिरा। नई विपदा नहीं लेना चाहता उसे उसके माहौल में जी लेने दो। कितने दिन बचे है। उसके पास खुली हवा के जब आक्सीजन बिक रही बाजारों में कोई क्या करेगा, कहाँ जाएगा। तमाशबीन लोग समझते नहीं। उन्हें तो स्टेटस सिंबल से सरोकार है।
बस! उसके सिवाय उन्हें कुछ नहीं पता सड़क सड़क से लापता है। उसमें गड्ढे है। लगता है सड़क के ठेकेदार की व्यवस्था भी ईएमआई में फंस गई है। कुछ नहीं किया जा सकता, कुछ भी तो नहीं। तभी रामप्यारी ने कहा कि घर के जाले ही हटा दो। कुछ तो करो। पांडेय जी ने कहा कि जो मेरे लायक काम हो वही बताया करो,जब देखो जालें हटा दो। पांडेय जी को ये सब करना बड़ा बुरा लगता था।एक बार स्टूल से गिर गए थे। इस कारण जरा सतर्क रहते है।
अभी कुछ देर पहले राधेलालजी का फोन आया कि उनकी सोसायटी में दिवाली से पहले शनिवार को कवि सम्मेलन का कार्यक्रम है क्या आ पाओगे! पांडेय जी ने कहा कि प्रभु! इस बार अपनी बुकिंग जरा साउथ दिल्ली से आई है।पहले ही सहमति दे रखी है। आप ने निवेदन करने में देर कर दी।हम्म! अच्छा लगा कि आजकल बुकिंग चल रही है। पांडेय जी भी कम उस्ताद न थे,झट कह दिया कि नवरात्रि का असर है,मातारानी सब की सुनती है।देर ही अंधेर नहीं।
ठीक है जी।जैसा आप चाहे।राधेलालजी ने फोन रख दिया। पांडेय जी ने सोचा कि आखिर लिजलिजे लोग समाज में क्यों है! मन्थन शुरू हुआ और रचना तैयार हुई।
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