अपराधी कहलाएँगे
(कविता)
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अख्तर अली शाह 'अनन्त'
अगर नहीं अब भी जागे हम ,
जख्मी तन मन पाएंगे ।
दुनिया वालों की नजरों में ,
अपराधी कहलाएगें।।
जब तक अंकुश नहीं लगेगा,
सत्ता की मनमानी पर ।
जब तक अज्ञानी नेता बन,
रोब कसेंगे ज्ञानी पर।।
जब तक अंधे यहां अकल के,
चीरहरण करवाएंगे।
जब तक विद्या मंदिर में,
मधुघट छलकाए जाएंगे।।
तब तक गम के बादल ही ,
शोले बरसाने आएंगे।
दुनिया वालों की नजरों में ,
अपराधी कहलाएंगे ।।
मेहनत से मुक्ति देकर ,
आलस को पनपाया हमने।
श्वेद बहाना भूल गए हम,
फोकट का खाया हमने ।।
बिना नींव के बांध बनाए ,
बिना सोच सड़कें रेलें।
मनमाने आदेश सुनाए ,
जनता के हित से खेले ।।
क्रांति उठेगी जब घर घर से ,
शौले कौन बुझाएंगे।
दुनिया वालों की नजरों में,
अपराधी कहलाएगें।।
शिक्षा देने वाले ही जब,
दर दर ठोकर खाएंगे।
आविष्कार कहाँ होंगे तब ,
कौन तरक्की लाएंगे।।
सोच अगर सेवा की होगी नहीं,
कौन तब तारेगा।
अशिक्षित अंधी जनता को ,
सागर पार उतारेगा।।
क्षमताओं की खुले आम ,
जब यूं होली जलवाएगें।
दुनिया वालों की नजरों में ,
अपराधी कहलाएंगे ।।
आरक्षण बेशक हो लेकिन ,
पैमानों को बदले हम।
जो गरीब तबके हैं उनकी,
भी सुध लें तो संभलें हम ।।
अगडों को पिछड़ों को करके ,
एक मिटा दें भेद सभी ।
छुआ छूत के जितने दानव हैं,
हो जाएं कैद सभी ।।
समरसता को जन जीवन में ,
अगर नहीं फैलाएंगे।
दुनिया वालों की नजरों में ,
अपराधी कहलाएंगे।।
न्याय चाहने वालों को ,
अन्याय मिले क्या अच्छा है ।
क्या उसका अधिकार नहीं,
जो चुप है सीधा सच्चा है।।
जिसके वंशज रहे दूर ,
सीमा पर पहरेदार बने।
जिसके वंशज वक्त पड़ा तो ,
धन देकर सरदार बने ।।
जब तक ऐसे हकदारों के ,
हक लोगों झुठलाएगें।
दुनिया वालों की नजरों में ,
अपराधी कहलाएगें।।
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
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वाह! वाह! अति उत्कृष्ट रचना है आदरणीय !
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