शरद के दोहे
(दोहे)
की अगुवानी महल ने, हुआ हास परिहास ।
लगे छलकने शिशिर में,मदिरा भरे गिलास ।।-1
देव दिवाकर धूप की, भेजें चादर आप ।
होरी करता रात भर,धूप-धूप का जाप ।।-2
कँपी रात भर झोपड़ी, गर्म रहे प्रासाद ।
ठिठुर-ठिठुर दुखिया करे,जाड़े का अनुवाद ।।-3
भरी पेटियां शीत की, आयीं मेरे गाँव ।
तपने लगे अलाव पर,कई घरों के पाँव ।।-4
निष्ठुर मारे नारि को, ज्यों कोड़ों की मार ।
शीत प्रकृति पर कर रहा, ऐसा तेज प्रहार ।।-5
लक्ष्मण रेखा खींच कर, सो जाते प्रासाद ।
लाँघ उसे कब जा सका,जाड़े का उन्माद ।।-6
वर्षा और समीर से, शीत हुआ बलवान ।
काँप-काँप कर कट रहा,रात और दिनमान ।।-7
भूखी सोये झोपड़ी, काँपे सारी रात ।
होरी का दिनमान क्या, बुरे हुए हालात ।।-8
सर्द पेटियां शिशिर की,लाया पवन तुरंग ।
जीव-जंतु कपने लगे, छिपने लगे भुजंग ।।-9
हाय ! निगोड़े शीत को,ऐसा चढ़ा जुनून ।
हँसते-खिलते जगत के,तोड़े मधुर प्रसून ।।-10
वसुधा ने जब ओढ ली,कुहरा वाली सौर ।
तब युग्मों में चल पड़ा,मधुर प्रेम का दौर ।।-11
क्यों देता जग को शरद, हँस-हँस गहरी पीर ।
तेरा मधुऋतु रश्मियां, कर देगीं आखीर ।।-12
तपने लगे अलाव पर,कई घरों के पाँव ।।-4
निष्ठुर मारे नारि को, ज्यों कोड़ों की मार ।
शीत प्रकृति पर कर रहा, ऐसा तेज प्रहार ।।-5
लक्ष्मण रेखा खींच कर, सो जाते प्रासाद ।
लाँघ उसे कब जा सका,जाड़े का उन्माद ।।-6
वर्षा और समीर से, शीत हुआ बलवान ।
काँप-काँप कर कट रहा,रात और दिनमान ।।-7
भूखी सोये झोपड़ी, काँपे सारी रात ।
होरी का दिनमान क्या, बुरे हुए हालात ।।-8
सर्द पेटियां शिशिर की,लाया पवन तुरंग ।
जीव-जंतु कपने लगे, छिपने लगे भुजंग ।।-9
हाय ! निगोड़े शीत को,ऐसा चढ़ा जुनून ।
हँसते-खिलते जगत के,तोड़े मधुर प्रसून ।।-10
वसुधा ने जब ओढ ली,कुहरा वाली सौर ।
तब युग्मों में चल पड़ा,मधुर प्रेम का दौर ।।-11
क्यों देता जग को शरद, हँस-हँस गहरी पीर ।
तेरा मधुऋतु रश्मियां, कर देगीं आखीर ।।-12
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