किसान की व्यथा कथा
आसमान से ओले आते देख आख भर आयी ।
बने विधाता बाम कृषक ने कैसी किस्मत पायी ।।
कर परिश्रम्य असीम खेत में बीज कृषक ने बोया ।
चाय हो गया श्याम घाम से रात नींद अति सोया ।।
जमा बीज जब देख रेख हुआ हृदय हरषायी ।।-.--.--.--.--.--.-१
नींद गुडाई करी कुटुम्ब संग ,सीच सीच श्रम भारी ।
किया कलेऊ बैठ कदम्ब तर ,जल भर लायी नारी।।
किया हास परिहास विगत श्रम , हाथ कुदाल उठायी ।।-.--.--.--.--.--.-२
लगा के बारी कर रखवारी बीत विभावरी जाती ।
रोज रोज और नील गाय के कारन नीद न आती ।।
मेङन मेङन करत रतजगा , गावत फाग दिवायी ।।-.--.--.--.--.--.--.-३
खेत लहलहा देख कृषक तब मन में है हरषाता ।
बरष जाहि में ब्याह बिटू को लगता करत विधाता ।।
कंगन कर्ज में रखे कबैके , अबके लेहु उठायी ।।-.--.--.--.--.--.--.--.--.-४
घटा घिरी घनघोर चहु दिश गया हृदय घबरायी ।
सोचा क्या क्या आज परभू जी कैसी विपदा आयी ।।
दौङा दौङा गया खेत पर गिरा भूमि भररायी ।।-.--.--.--.--.--.--५
आसमान से ओले आते देख आख भर आयी ।ओ
फसल नष्ट सी देख दुर्दशा हारा हिम्मत भायी ।।
चढ बबूल पर वाही दिन को फासी गले लगायी ।।-.--.--.६
प्यारे ऐसा न करते तुम , मेहनत मजदूरी करते ।
पीले हाथ अपनी बिटिया के, सम्मेलन में करते ।।
सोची समझी नहीं सजन ने , आफद द ई बङायी ।।
बने विधाता बाम कृषक ने,कैसी किस्मत पायी ।।.......॥॥.७
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पता:
राजेश तिवारी 'मक्खन'
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