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Wednesday, 23 December 2020

तेरा मुस्कराना (ग़ज़ल) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

 

तेरा मुस्कराना
(ग़ज़ल)
गिराता है बिजली,तेरा मुस्कराना,
करे गत है दिल की,तेरा मुस्कराना।

क़यामत है आती,तेरा देखना यूँ,
ज़रूरत न छल की,तेरा मुस्कराना।

गुलाबों की खुशबूू,लगे रातरानी,
दिल की कसक की,तेरा मुस्कराना।

है यमुना की नहरें,है गंगा की कल-कल,
है निर्मलता जल की,तेरा मुस्कराना।

है सुलझी पहेली,किंचिंत जटिल ना,
ज़रूरत ना हल की,तेरा मुस्काराना।

है मंगल,मधुरता,मानस-चौपाई,
घड़ी है सुफल की,तेरा मुस्कराना

तूफान ला दे,ला दे जलजला जो,
ख़बर ना है कल की,तेरा मुस्कराना।

मीरा की भक्ति,कबिरा की वाणी,
यादें भजन की,तेरा मुस्कराना।

मुहब्बत की बातें करता है मानो,
दावत पहल की,तेरा मुस्कराना।

लूटे 'शरद' को बिना कट्टा,चाकू,
ज़रूरत क्या बल की,तेरा मुस्कराना।
-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
-०-


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