पत्र जो लिखा पर भेजा नहीं
(कविता)
संजो कर रखे हैं आज भी मैंने,
उन प्रेम पत्रों को,
जो मेरी चाहतों के थे,
मेरे प्रीत के थे,
पर कभी भेज न सका,
एक डर अंदर ही अंदर,
मुझे ही सता रहा था,
कि पत्रों को पढ़ कर,
तुम बुरा न मान जावो,
या कहीं नाराज न हो जावो,
उन पत्रों में अपनी भावनाओं को,
एक एक कर उकेरा है,
बस! चाहतों का बसेरा है,
आज भी कभी उन पत्रों को पढ़ता हूँ,
दिल में एक टीस उभर आती,
काश! अगर भेज दिया होता,
तो शायद! बात बन जाती,
पर एक संतोष भी रहता है,
अगर पढ़ लेती उन पत्रों को,
और मेरे प्यार को कहीं,
पत्र पढ़कर,
कर देती मुझसे,
प्यार का इज़हार,
जीवन पर हो जाता,
तुम्हारा मेरे ऊपर उपकार,
पर कर देती इंकार,
तो मेरे दिल पर होता,
एक मजबूत प्रहार,
अच्छा ही हुआ न भेजा,
उन अनगिनत पत्रों को,
जिसमें लिखा था मैंने,
अपना पवित्र प्यार,
कभी भेज न सका।।
उन प्रेम पत्रों को,
जो मेरी चाहतों के थे,
मेरे प्रीत के थे,
पर कभी भेज न सका,
एक डर अंदर ही अंदर,
मुझे ही सता रहा था,
कि पत्रों को पढ़ कर,
तुम बुरा न मान जावो,
या कहीं नाराज न हो जावो,
उन पत्रों में अपनी भावनाओं को,
एक एक कर उकेरा है,
बस! चाहतों का बसेरा है,
आज भी कभी उन पत्रों को पढ़ता हूँ,
दिल में एक टीस उभर आती,
काश! अगर भेज दिया होता,
तो शायद! बात बन जाती,
पर एक संतोष भी रहता है,
अगर पढ़ लेती उन पत्रों को,
और मेरे प्यार को कहीं,
पत्र पढ़कर,
कर देती मुझसे,
प्यार का इज़हार,
जीवन पर हो जाता,
तुम्हारा मेरे ऊपर उपकार,
पर कर देती इंकार,
तो मेरे दिल पर होता,
एक मजबूत प्रहार,
अच्छा ही हुआ न भेजा,
उन अनगिनत पत्रों को,
जिसमें लिखा था मैंने,
अपना पवित्र प्यार,
कभी भेज न सका।।
-०-
लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
-०-
खूबसूरत
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