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Tuesday, 10 December 2019

बुकिंग (लघुकथा) - श्रीमती सरिता सुराणा

बुकिंग
(लघुकथा)
बाजार में खरीदारी के दौरान अनीता को उसकी पुरानी पड़ौसन मिल गई। दोनों वहीं साइड में खड़े होकर बातें करने लगी। बातों ही बातों में पड़ौसन ने बताया कि उसकी बुआ गुजर गई है। सुनकर अनीता ने अफसोस जताते हुए कहा- अभी तो उनकी उम्र छोटी ही थी।'
तब पड़ौसन ने कहा- 'मौत उम्र को थोड़े ही देखती है। अभी तो बेटे की शादी तय की थी और दस दिन बाद ही शादी होने वाली थी।'
'तब तो शादी पोस्टपोन कर दी होगी।'
'नहीं, शादी कैसे रुक सकती है? आपको तो पता ही है कि आजकल आने-जाने की टिकटें, कैटरिंग, फंक्शन हाॅल, डेकोरेशन आदि सबकी एडवांस बुकिंग रहती है। उन सबको कैंसिल करने से लाखों का नुक़सान हो जाता।'
यह सुनकर अनीता सोचने लगी कि आज़ के इस भौतिकवादी युग में आदमी करे तो क्या करे? मां की मौत का शोक मनाए या 'बुकिंग' जारी रखे?
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श्रीमती सरिता सुराणा
हैदराबाद (तेलंगाना)
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