नौटंकीबाज
(कविता)
आजकल बदल गई नोटंकी
और बदल गए नोटंकीबाज
किरदार बदल गए,
मंच बदल गए।
देश बदल गए,
परिवेश बदल गए।
अब हँसना हँसाना विषय नही रहें
और न ही रहा इनका
सामाजिक सरोकार
अब देखी नही जाती नोटंकी
किसी चौराहे पर
या गली के किसी नुक्कड़ पर
लोगों का मनोरंजन करते।
बल्कि सजते है
आजकल बदल गई नोटंकी
और बदल गए नोटंकीबाज
किरदार बदल गए,
मंच बदल गए।
देश बदल गए,
परिवेश बदल गए।
अब हँसना हँसाना विषय नही रहें
और न ही रहा इनका
सामाजिक सरोकार
अब देखी नही जाती नोटंकी
किसी चौराहे पर
या गली के किसी नुक्कड़ पर
लोगों का मनोरंजन करते।
बल्कि सजते है
मंच संसदऔर विधानसभाओं में
जहाँ किरदार होते है
सफेदपोश चेहरे
जो अपने से लगते है पर
होते नही
जो खेलते हे फरेब व धोखे का खेल
और ठगते है भोली जनता को
इन्हें देखा जाता है
किसी सभा में छलते जनता को
और अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेकते
या किसी सैनिक या किसान कि अकाल मौत पर
घडियाली आँसू बहाते
या किसी गरीब की झौपड़ी में विलायती होटल का खाना खाते
उस गरीब की थाली में
उसी का कहकर
कहाँ नही है इनके सगे
देख सकतें हो इन्हें
किसान के खेत कि मेड़ पर
स्वार्थ की मिट्टी ढ़ोते
या अपने ही सगे नोटंकीबाजों
पर दिखावटी हमले करते
बड़े चालाक होते है आज के
नोटंकीबाज
अब नही लगता बच पाएगे
हम इनसें
बचा नही पाएगा ईश्वर भी
लगता है, डरता है वह भी
इनके कारनामों से
-०-
जहाँ किरदार होते है
सफेदपोश चेहरे
जो अपने से लगते है पर
होते नही
जो खेलते हे फरेब व धोखे का खेल
और ठगते है भोली जनता को
इन्हें देखा जाता है
किसी सभा में छलते जनता को
और अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेकते
या किसी सैनिक या किसान कि अकाल मौत पर
घडियाली आँसू बहाते
या किसी गरीब की झौपड़ी में विलायती होटल का खाना खाते
उस गरीब की थाली में
उसी का कहकर
कहाँ नही है इनके सगे
देख सकतें हो इन्हें
किसान के खेत कि मेड़ पर
स्वार्थ की मिट्टी ढ़ोते
या अपने ही सगे नोटंकीबाजों
पर दिखावटी हमले करते
बड़े चालाक होते है आज के
नोटंकीबाज
अब नही लगता बच पाएगे
हम इनसें
बचा नही पाएगा ईश्वर भी
लगता है, डरता है वह भी
इनके कारनामों से
-०-
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