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Tuesday, 10 December 2019

साहिल (कविता) - गीतांजली वार्ष्णेय

साहिल
(कविता)
खड़े थे साहिल पे,तूफ़ां का गुमां न था
आएगी मुसीबत इस तरह, पता न था।
जिंदगी के सफर में चले थे तलाशने मंजिल
राहें होंगी काँटों भरी, ये शुबा न था ।।

खोए थे ख्यालों मैं,हलचल थी पानी में,
डुबा ही देगी लहर,ये सोचा ही न था।
किनारों पे डूबा करती है कश्तियां,
इस हकीकत का हमको पता न था।।

भूल हुई साहिल को मंजिल समझ बैठे,
साहिल पे डूबी कश्ती हमारी,संघर्षों का समय न था।
जीवन नैया खड़ी किनारे पर,
मगर पतवार का हमको पता न था।।

अक्सर तूफान में किनारे मिल जाते है,
हमसे क्या क्या छूटा,मंजरों को पता न था,
छोड़कर चाहत फूलों की,काँटों से दिल लगा बैठे,
फूलों में छिपे हुए शूल का पता न था।।
-०-
पता:
गीतांजली वार्ष्णेय
बरेली (उत्तर प्रदेश)
-०-
***
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