जीत
(कविता)
धोखे के बदले
नहीं मिलता है यश
ना ही कीर्ति
बल्कि बदले में मिलता है
कभी ना खत्म होने वाला
अपराध बोध और ग्लानि
जो चैन नहीं लेने देता है तुमको
किसी की मासूमियत से खेलना
बेचैन किए रहता है तुमको
भले ही ठहाकों पर तुमने
अपना अधिकार जमा रखा हो
लेकिन हँसी का खोखलापन
तुम चाह कर भी छुपा नहीं पाते हो
वर्चस्व की प्रतिद्वंदता में
तुम अपनी जीत नहीं पचा पाते हो
-०-
नहीं मिलता है यश
ना ही कीर्ति
बल्कि बदले में मिलता है
कभी ना खत्म होने वाला
अपराध बोध और ग्लानि
जो चैन नहीं लेने देता है तुमको
किसी की मासूमियत से खेलना
बेचैन किए रहता है तुमको
भले ही ठहाकों पर तुमने
अपना अधिकार जमा रखा हो
लेकिन हँसी का खोखलापन
तुम चाह कर भी छुपा नहीं पाते हो
वर्चस्व की प्रतिद्वंदता में
तुम अपनी जीत नहीं पचा पाते हो
-०-
पता-
शिप्रा खरे
लखीमपुर (उत्तरप्रदेश)
-०-
बहुत ही प्रेरणा दायक लेखनी । इस कविता की प्रत्येक पंक्ति शिक्षाप्रद है।
ReplyDeleteमैम आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं
हार्दिक धन्यवाद
DeleteVery inspiring lines . Congratulations Mam
ReplyDeleteGreat. Inspiring and motivating
ReplyDeleteThank you so much
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteधोखा,यश,कीर्ति,हार,जीत,बोधगम्यता,अधिकार,ग्लानि,वर्चस्व,प्रतिद्वंदता आदि शब्द जो स्वयं में बिखरे हुए व् आत्मनिष्ठ भावों एवं अर्थो को संग्रहित किए हुए, जिसका सजीव् चित्रण!
ReplyDeleteअद्भुत कविता! आभार आपका
आपकी सकारात्मक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार
Deleteअक्षर अक्षर सार्थक है मैम,
ReplyDeleteअद्भुत।
हार्दिक धन्यवाद
DeleteRight di
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