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Monday, 25 November 2019

जीत (कविता) - शिप्रा खरे

जीत
(कविता)
धोखे के बदले
नहीं मिलता है यश
ना ही कीर्ति
बल्कि बदले में मिलता है
कभी ना खत्म होने वाला
अपराध बोध और ग्लानि
जो चैन नहीं लेने देता है तुमको
किसी की मासूमियत से खेलना
बेचैन किए रहता है तुमको
भले ही ठहाकों पर तुमने
अपना अधिकार जमा रखा हो
लेकिन हँसी का खोखलापन
तुम चाह कर भी छुपा नहीं पाते हो
वर्चस्व की प्रतिद्वंदता में
तुम अपनी जीत नहीं पचा पाते हो
-०-
पता- 
शिप्रा खरे
लखीमपुर (उत्तरप्रदेश)
-०-

***
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11 comments:

  1. बहुत ही प्रेरणा दायक लेखनी । इस कविता की प्रत्येक पंक्ति शिक्षाप्रद है।
    मैम आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं

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  2. Very inspiring lines . Congratulations Mam

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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. धोखा,यश,कीर्ति,हार,जीत,बोधगम्यता,अधिकार,ग्लानि,वर्चस्व,प्रतिद्वंदता आदि शब्द जो स्वयं में बिखरे हुए व् आत्मनिष्ठ भावों एवं अर्थो को संग्रहित किए हुए, जिसका सजीव् चित्रण!
    अद्भुत कविता! आभार आपका

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी सकारात्मक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार

      Delete
  5. अक्षर अक्षर सार्थक है मैम,
    अद्भुत।

    ReplyDelete

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