प्रतिष्ठित बाल साहित्यकार डॉ.शुभा ने पुत्र से कहा,
"बेटे वैभव! एटीएम कार्ड ले जाओ , बैंक से रुपए निकाल कर लाने हैं ,मुझे साहित्य-सम्मेलन में जाना है।"
"अच्छा मम्मी जी।"
काम में व्यस्त बेटा रुपए निकलवाने भूल गया। सम्मेलन में जाने से कुछ समय पूर्व आया और बोला मम्मी जी सब तैयारी हो गई क्या? लाओ, एटीएम कार्ड अभी रुपये निकलवा कर लाता हूँ।"
"नहीं बेटे अब रुपए नहीं निकलवाने , प्रबंध हो गया है।
बेटा माँ का स्वभाव अच्छी तरह जानता था,उसने मनुहार करके माँ से सारी बातें उगलवा लीं।
"माँ ने कहा ,"बेटे! मेरे पास पहले के बचे हुए कुछ रुपए हैं,जो पर्याप्त हैं, यदि आवश्यकता पड़ी तो मेरे साथ सम्मेलन में जा रही मनोरमा सहेली से ले लूँगी।उसका औरमेरा खाता खुला है। तुम चिंता मत करो।"
"नहीं मम्मी , यह तो इज्ज़त का सवाल है, मनोरम आंटी जी क्या सोचेंगी।"
वैभव अपने कमरे में गया और अलमारी का लॉकर खोल कर झटपट रुपए निकाल कर लाया, माँ के चरणों में
रखते हुए बोला, "ईश्वर का कोटिशः धन्यवाद माँ, उन्होंने ने मुझे अपनी प्यारी मम्मी की छोटी-सी सेवा करने का स्वर्णिम अवसर दिया।" माँ और पुत्र दोनों की आँखें नम हो गईं।
"बेटे वैभव! एटीएम कार्ड ले जाओ , बैंक से रुपए निकाल कर लाने हैं ,मुझे साहित्य-सम्मेलन में जाना है।"
"अच्छा मम्मी जी।"
काम में व्यस्त बेटा रुपए निकलवाने भूल गया। सम्मेलन में जाने से कुछ समय पूर्व आया और बोला मम्मी जी सब तैयारी हो गई क्या? लाओ, एटीएम कार्ड अभी रुपये निकलवा कर लाता हूँ।"
"नहीं बेटे अब रुपए नहीं निकलवाने , प्रबंध हो गया है।
बेटा माँ का स्वभाव अच्छी तरह जानता था,उसने मनुहार करके माँ से सारी बातें उगलवा लीं।
"माँ ने कहा ,"बेटे! मेरे पास पहले के बचे हुए कुछ रुपए हैं,जो पर्याप्त हैं, यदि आवश्यकता पड़ी तो मेरे साथ सम्मेलन में जा रही मनोरमा सहेली से ले लूँगी।उसका औरमेरा खाता खुला है। तुम चिंता मत करो।"
"नहीं मम्मी , यह तो इज्ज़त का सवाल है, मनोरम आंटी जी क्या सोचेंगी।"
वैभव अपने कमरे में गया और अलमारी का लॉकर खोल कर झटपट रुपए निकाल कर लाया, माँ के चरणों में
रखते हुए बोला, "ईश्वर का कोटिशः धन्यवाद माँ, उन्होंने ने मुझे अपनी प्यारी मम्मी की छोटी-सी सेवा करने का स्वर्णिम अवसर दिया।" माँ और पुत्र दोनों की आँखें नम हो गईं।
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पता-
पता-
सुखद और प्रेरक रचना
ReplyDeleteवाहहहह सुन्दर प्रेरणास्पद रचना आदरणीय ज्ञान पीयूष जी
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