(कविता)
इक दीप जलाना तुम भी
जो जग को रौशन कर दे,
वो प्रकाश मन में भरना
जो जीवन जगमग कर दे।
देख तुम्हें पुलकित होते
हर कलियाँ मुस्काऐंगी,
धुनें रसीली छेड़े भौरा
गुन-गुन गुन-गुन कर के।
सांझ सवेरे कोयल कूके
हर मन में हूक उठे,
पंछी भी उड़ चले घोसले
अपने डग भर कर के।
साथी तुम भी एक कदम
बढ़ाओ अपने घर को,
और दिवाली कर दो रौशन
सबसे मिल-जुल कर के।
-०-
नन्दनी प्रनय तिवारी ©®
रांची (झारखंड)
-०-
सुंदर रचना
ReplyDelete