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Tuesday, 29 October 2019

होड़ (कहानी) - वंदना भटनागर

होड़
(कहानी)
आज अभिज्ञान को ऑफिस से अपने घर पहुंचने में बहुत देर हो गई थी ।उनकी पत्नी ऐश्वर्या ने उनके आते ही प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी ।वह बड़े बुझे मन से बोले "हमारे साथी विजय कि आज कार्यालय में ही तबियत खराब हो गई थी ।हम उन्हें लेकर तुरंत ही अस्पताल पहुंचे पर कोई फायदा नहीं हुआ कुछ ही घंटों में उन्होंने दम तोड़ दिया ।फिर सारी कार्यवाही पूरी करके उनके शव को उनके घर पर पहुंचा कर आये। उनकी आकस्मिक मृत्यु से सभी स्तब्ध थे।"मैं तुम्हें फोन करके बताना चाह रहा था पर वहां सिग्नल ही नहीं आ रहे थे।
ऐश्वर्या बोली" कौन कौन है उनके परिवार में"
अभिज्ञान बोले बस अब तीन लोग रह गये हैं दो बच्चे और उनकी पत्नी।लडकी तो अभी आठवीं में ही पढ़ रही है,और लड़के ने अभी बी.एस.सी.पूरी करी है।उनकी तो वाइफ भी पढ़ी लिखी नहीं हैं ज़्यादा जो कहीं नौकरी भी कर लें।अब तो अनुकम्पा के आधार पर नौकरी भी बड़ी मुश्किल से मिलती है पर मैं उसके लड़के की नौकरी के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दूंगा।
ऐश्वर्या ने खाना लगाने के लिए पूछा तो अभिज्ञान ने मना कर दिया और फिर नहा धोकर बिना खाये पिये ही लेट गये। उन्हें विजय के साथ नौकरी करते हुए पन्द्रह साल हो गये थे,वो एक नेकदिल इंसान थे।उनके साथ बिताये गये सारे पल उन्हें रह-रहकर याद आ रहे थे।
कुछ दिन बाद ही अभिज्ञान ने विजय के सारे पेपर जल्दी से तैयार करवा दिये ताकि उनके फंड का पैसा एवं पेंशन उनके परिवार को मिल सके। यूनियन में अच्छे पद पर होने का यह फायदा उनको ज़रूर मिला ।ये काम होने पर वो उसके बेटे की नौकरी के लिए भागदौड़ में लग गए। बार-बार उन्हें हेड ऑफिस के लिए दूसरे शहर जाना पड़ता था।पर वो अपने टाइम और पैसे की भी परवाह नहीं करते थे। बस उनका एक ही ध्येय था कि विजय के बेटे को नौकरी मिल जाए। एक बार अभिज्ञान की तबियत बहुत खराब थी और उनको विजय के बेटे के काम के लिए हेड ऑफिस से बुलवाया गया था तब उन्होंने ऑफिस में कार्यरत दूसरे यूनियन कर्मचारी से वहां जाने का आग्रह किया तो वह उनसे बोला अभिज्ञान जी मैं आपकी तरह बेवकूफ नहीं हूं जो किसी और के लिए अपना टाइम और पैसा दोनों लगाऊं। उसकी बात सुनकर उनका मन कसैला हो गया था। फिर तबियत खराब होने के बावजूद भी वो खुद ही गए और अब की बार उसकी नियुक्ति की खुशखबरी लेकर आए। कुछ समय बाद जब विजय के बेटे ने ऑफिस ज्वाइन किया तो स्टाफ के सभी लोग उसके पास आकर ऐसे जता रहे थे जैसे उसको नौकरी दिलवाने में उन्हीं का हाथ हो। सबमें श्रेय लेने की होड़ लगी थी। जबकि अभिज्ञान इन सब बातों से बेखबर अपने काम में मशगूल थे ।उन्हें तो बस इस बात की खुशी थी कि उनकी मेहनत सफल हुई। विजय का बेटा सारी असलियत जानता था ।वो अभिज्ञान के पास गया और उनके चरण स्पर्श करके बोला अगर आप इतनी कोशिश ना करते तो मुझे नौकरी मिलना संभव नहीं था । आपका यह एहसान मैं ताउम्र याद रखूंगा ।अभिज्ञान उसकी बात सुनकर भावुक हो गए और बोले अपनों पर कोई एहसान नहीं किया जाता और ऐसा कह कर उन्होंने उसे अपने गले से लगा लिया ।बाकी स्टाफ वाले अब अपना सा मुंह लेकर रह गए।
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वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर (उत्तर प्रदेश)


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