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Thursday, 30 January 2020

नई बात (लघुकथा) - महावीर उत्तराँचली

नई बात
(लघुकथा)
“काश! तुम लोगों ने मुझे इंसान ही रहने दिया होता, भगवान् नहीं समझा होता,” प्रभु विन्रम स्वर में बोले।
“प्रभु ऐसा क्यों कह रहे हैं? क्या हमसे कुछ अपराध बन पड़ा है?” सबसे करीब खड़े भक्त ने करवद्ध हो, व्याकुलता से कहा।
“अगर मै सच्चा इंसान बनने की कोशिश करता तो संभवत: भगवान् भी हो जाता,” प्रभु ने पुन: विन्रमता के साथ कहा।
“वाह प्रभु वाह।” आज आपने ‘नई बात’ कह दी,” भक्त श्रद्धा से नतमस्तक हो गया और वातावरण में चहुँ ओर प्रभु की जय-जयकार गूंजने लगी। भगवान् बनने की दिशा में वो एक कदम और आगे बढ़ गए।•••
पता: 
महावीर उत्तराँचली
दिल्ली
-०-

***
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